Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 33
________________ अनुसन्धान ४४ ता नत्थि इह कलाओ पररंजणविम्हएक्कजणणीओ। जाणामि जा न पयर्ड मुत्तुं नियरंजणं एक्कं ॥ ५ ॥ किं गहिलो कि सज्जो कि मुक्खो पंडिओ य किं अहयं । मासाहससउणिसमो किं वा चिट्ठामि घंघलिओ ॥ ६ ॥ गरुयनिकाइयकम्मो कि ठगिओ चन्निओ य सन्नो वा । किं गद्ध-सूयरोहं रंजेमि मणो न जं धम्मे ॥ ७ ॥ परिदेवणमेत्तं चिय अहयं पेच्छामि अत्तणो एकं । जं उज्जमे न सत्ती ही ही ! होहं कहमहंति ? ।। ८ ॥ अज्ज करेमि कल्लं, करेमि धम्मुज्जमं तुमं भणसि । इय निप्फलवंछाहिं समप्पिही जम्मपरिवाडी ॥ ९ ॥ जाणइ देक्खइ संभलइ सउ भम्मलु ववहारू । धम्मि न लग्गइ अहह तुहं कुणइ जु सव्व असारू ।। १० ।। दिट्ठम्मि वि दिटुंते खणभंगुरजीवियस्स पच्चक्खं । थेवंपि न चेइज्जइ जीवेहिं गरुयकम्मेहिं ।। ११ ।। सिरि धम्मसूरि मुणिवइ-सीसेहिं रयणसिंहसूरीहिं । संवेगमेरुसिंगे भमिया विलसंतु कहियमिणं ॥ १२ ॥ छ ।। संवेगचूलिका कुलकम् ॥ छ ।। ల (७) श्री नेमिनाथस्तोत्र अमियमऊहं नेमि सुररायथुयंपि जइविहं जलही । दटुं उल्लसियंगो थुणामि तो सायरो संतो ॥ १ ॥ मेसुम्मेसपवित्ती जा पुव्वि परिचियासि अच्चंतं । पइं पेच्छिय नयणाणं सावि कहं मज्झ पम्हुछा ।। २ ।। तुह सामि ! देहपउमे पलोइडं चारुरूवमयरंदं । आजम्मं पि पियंतो मह मणभमरो न संतुट्ठो ।। ३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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