Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ जून २००८ अइय तरुयडा नेमिजिण ! तुह जगि आमर हूलु । तिहुयण मई सउ जोइया दीठु न तुह परि तूलु ॥ २ ॥ काइ सचंगिम अंगिम तुहु जावत्रणह न जाइ। जेत्थु निविट्ठी दिट्ठिडी तिहिविय अंगि न ठाइ ॥ ३ ॥ दोहगि दूमिय तरुणियण सोहगु लहइ नमंति । हियड़इ भत्ति-समाउलिण नेमिहि पय जि नमंति ।। ४ ।। अगर-कपूर-कथूरियहं जे तुहु भत्ति कुणंति । मुत्तिवहूइ ति कंठुलइ मुत्तियहारि तुलंति ॥ ५ ॥ अणहिलवाडं सग्गपुर अह महु इंदह रज्जु । जहिं जिणु दीसइ नेमि मई, कुण इजु चिंतियकज्जु ॥ ६ ॥ रलिय रंगि वद्धावणं महु मणि नच्चिउ तेव । पत्थिवि एत्थुवि नेमि मइं सिवसुह पाविउ जेव ॥ ७ ॥ रयणसिंहसूरिहिं थुणिउ तिहुयणतिलक जु देउ । भत्तिपरायण भवियणहं मणवंछउ सो देउ ॥ ८ ॥ (१२) श्री नेमिनाथ स्तव सिरि नेमिनाह ! सामिय ! जइवि न विहवो तहाविहो मज्झ । सब्भावगब्भसारं मणोरहे महवि जंपेसि ॥ १ ॥ कुंकुमपललक्खेहिं निरुवममयनाहिपलसहस्सेहिं । कप्पूरपलसएहि कालागुरुअगणियपलेहिं ॥ २ ॥ न्हवण विलेवण मंडण उग्गाहण पमुहचारुकिच्चाई। काऊण जहिच्छाए नियकरकमलेहिं तुह सामि ! ॥ ३ ॥ एयं कुणमाणेणं मई जिण ! आणंदअंसुनिवहेण । जं तुह तविओ देहो खमियव्वं तं पुणो मज्झ ॥ ४ ।। हीरय-सुवन्न-मोत्तिय-फुरंत-रयणेहिं कोडिमुल्लेहिं । तुह जिण ! आहरणेहिं सिंगारं काउमिच्छामि ॥ ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126