Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
ता किं करेमि कस्स व कहेमि इय पुण पुणोवि रुंटतं । दुक्खपलित्तं धावइ मह हिययं दससु वि दिसासु ॥ २५ ॥ दीणोसु संतजीहो भमंतनयणो घुलंतसव्वंगो । विसयविसातविओहं हरिणोव्व न निवडिओ कत्थ ? ।। २६ ॥ दुहदावतावियंगो नहम्मि सुन्ने करे भमाडंतो। कत्थवि रइमलहंतो तुह विरहे नाह ! कह होहं? ॥ २७ ॥ एयंपि वियाणंतो जं न सहो रंजिउं खणं पि मणं । ता नाह ! कालथक्को ही ही! पविसामि कत्थ अहं? ॥ २८ ॥ इय विन्नत्तिं सोउं जइ अप्पा आरुहइ खणं रंगे। जह नवणीयं जलणे तह ता वियलइ फुडं कम्मं ।। २९ ।। इय तिहुयण-भाल-रयण ! सूरीहिं जिणिंद ! विनविज्जंत ! । निरुवमकल्लाणनिहिं कुणसु असेसंपि जियलोयं ॥ ३० ॥ छ ।।
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.. (४) अप्पाणुसासणं सिरि धम्मसूरि सुगुरुं पुणो पुणो पणमिऊण भावेणं । तिहुयणसारं तत्तं अप्पहियं किंपि जंपेमि ।। १ ।। गीयं अमियं इ8 नहु मिटुं किंपि जीवलोगम्मि । पुरिसविसेसस्स मुहे जह मिट्ठा भारई देवी ॥ २ ॥ उवसम-विवेय-संवर-पयाण अत्थं न को मुणइ एत्थ ? । सुव्वइ न कोइ अवरो चिलाइपुत्तो जहा भयवं ॥ ३ ॥ तरतमजोगो भेए रसो पयासेइ धाउविसयम्मि । ता जाव सद्दवेहो अओ परं नत्थि रससिद्धी ॥ ४ ॥ धाउव्व उवसमाई रसोव्व चित्तं इमाण संजोओ। ता जाव सिद्धि-सिद्धी सो भन्नइ सद्दवेहविही ।। ५ ।। वक्खाणंति सुणंति य मुणंति तत्तं सिरंपि धूणंति । रोमंचवाहइंधं भिज्जइ न मणो न तो किंपि ।। ६ ॥
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