Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 26
________________ जून २००८ भवकूवमज्जिरेणं हत्थालंबो मए तुमं पत्तो । मोहवसा उव्वलिउं निवडतं अहह मं रक्ख ॥ ११ ॥ जइ सम्मं मह सामिय ! सव्वंगं फुरइ भवदुहसरूवं । ता नीरंपि न पाउं कमइ मणे किं पुणऽन्नकहा ? ॥ १२ ।। तुह आणाए सामिय ! एगत्तो अम्ह माणसं फुरइ । अन्नत्तो विसएसुं डमरुयगंठिव्व किं करिमो ।। १३ ।। पवणपणुल्लिरनीरे रविपडिबिंबं व चंचलं भुवणं । अणसमयं पि नियंतो जं नवि रज्जामि ही विसया ! ॥ १४ ॥ अवहीरिओवि तुमए पत्थेमी तहवि कलुणवयणेहिं । पइ मुक्को अहह भवे सामिय ! होहं कहमहति ।। १५ ॥ अहह ! अहं नो सामिय ! सरणागयवच्छलेवि पई पत्ते । मह जं न परित्ताणं ता हं दीणो कहं होहं ? ॥ १६ ॥ कत्थ कया कह पुणरविमाइ सद्धाइ नाह ! तं दच्छं । ता मज्झ हे दयालुय ! दिट्ठिपसायं पणामेसु ॥ १७ ॥ जं कि पि हु संसारे पगरिसपत्तं मणम्मि सुहज्झेयं । तह जीहाइ थुणिज्जतं पि हु मह नाह ! तं चेव ॥ १८ ॥ तुह पयसेवं मुत्तुं न हु अवरं किंपि नाह ! पत्थेमि । ता कि मं अवहीरसि करुणाभरमंथरं नियसु ।। १९ ।। जइ तुडिवसेण तुम्हं नयणंबुयकरपरायपिंजरिओ । होहं कहमवि ता जिण ! नन्नो धन्नो जए नूणं ॥ २० ॥ तुह सिद्धंतरहस्सं नाउं संवेगसंगयमणोवि। विसएसु जं घुलामी तं सल्लं हल्लइ महल्लं ॥ २१ ॥ व,तो वि उवाए जमहं न तरामि लंघिउं देव्वं । का तत्थ मज्झ अरई पुणो पुणो तहवि भिज्जामि ।। २२ ।। तुह समयसमुद्दाओ मइमंदरमंथणेण सामि ! मए । उवसमरयणं लद्धं बद्धं नियहिययगंठीए ॥ २३ ॥ तिहुयणरज्जाओ वि हु अहिओ मह जाव फुरइ आणंदो । विसयाइ-तक्करहिं ता हीरइ ही नियंतस्स ॥ २४ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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