Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ जून २००८ २३ इक्किको वि हु गुरुओ मिलिआ सव्वेवि जइ पुणो हुंति । अइंसणेण तेसिं साहू [णं] मह नमुक्कारो ॥ ३५ ॥ नामेणं चिअ साहू साहूसु न ताण होइ अवयारो। किं परविकत्थणेणं अहवा चिंतेसु अप्पाणं ।। ३६ ॥ अहयंपि एरिसो अह सुद्धं मग्गं च इह परूवितो। संविग्गपक्खिअत्ता, धन्नं मन्नामि अप्पाणं ॥ ३७॥ एवं ठियस्स सययं मणस्स भावस्स पत्तिअइ को वा । पच्चाइएण किं वा अप्पा चिअ सक्खिओ इत्थ ॥ ३८ ॥ जं पुण वायाए च्चिअ भणामि कारण किं पि न करेमि । तत्थत्थि गुरुअदुक्खं मणमंदिरंसंठिअं मज्झ ॥ ३९ ॥ सुद्धालोअणदाणं काउं मित्तिं च सव्वसत्तेसु । अप्पाणं गरिहंतो भावेसु अहं कया तत्तं ? ॥ ४० ॥ एगं चिअ मह सलयइ जं न सहाए लहामि मणइटे। एवं ज्झायंतस्स उ को जाणइ किंपि होहित्ति ॥ ४१ ।। आणंद दाऊणं समग्गसंघस्स गहियआसीसो । अप्पाणं भावितो विहरेसु जया तया अहयं ॥ ४२ ॥ जइ कहवि जाइ दियहं रत्ती न हु जाइ अप्पचिताए । थोवजले मच्छस्स व तल्लोवेल्लिं कुणंतस्स ॥ ४४ ।। चेयहु चेयहु चेयहु हंहो मूढ मइ ! कहिय कहाणिय सव्वपयारिहिं तुम्ह मई। हियडं ताविवि पुणु पुणु खोट्टेसुहु धरणि, परत न केणवि होसइ तहिं पत्तइ मरणि ।। ४५ ॥ हियड़इ रंगु न जाहं तहं सउ वक्तु सुपडिहाइ । जइ पुणु केवइ रंगु तउ नयणिहि नीरु न माइ ।। ४६ ॥ जलणसमं कामीणं नीरसलोयाण तुसवुससमाणं । विरयाणं अमियसमं एयं सव्वंपि जं भणियं ।। ४७ ॥ गंतव्वं कत्थ मए कह एसो चंदिणो य जियलोओ। कह माइ-सयण-विहवो इय झूरसि हा हयास ! तया ।। ४८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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