Book Title: Anusandhan 2008 06 SrNo 44
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ४४
सर्वमप्येतदाख्यात-मयोग्यं नैव सेवते । क्षुत्क्षामापि जलौका किं पाषाणं चुम्बितुं स्पृशेत् ? || २४ ॥ सूरिः श्रीरत्नसिंहाख्यः संवेगामृतभावनाम् । चक्रे स्वस्योपकारार्य-मात्मानुशास्तिसंज्ञिकाम् ॥ २५ ॥ छ ।।
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(३) श्रीऋषभदेव विज्ञप्तिका जय जय भुवणदिवायर ! तिहुयणगुणरयणसायर ! जिणिंद ! । सिरि रिसहनाह ! सामिय ! विन्नत्ति मज्झ निसुणेहि ।। १ ॥ जोसि तुमं जयबंधव ! थुणिओ सुरराय-फणिवइ-गुरूहिं। तस्स तुहं नियहिययं पयर्डतो किंपि जंपेमि ॥ २ ॥ भव-भमण-भीरुओ हं किंपि रगन्नो (कंपिरगत्तो?) जिणिंद ! तुह पुरओ। सरिउं पि हु अतरंतो हिययदुहं तहवि साहेमि ॥ ३ ।। नरयाईण दुहाणं अच्छउ दूरे कहावि किर ताव । गब्भंमि वि जावत्था कलमलयं सावि तं जणइ ॥ ४ ॥ जेण न पावेमि रई कत्थवि लीणो खणं पि हे नाह ! | ता अहह कुण परित्तं अणंतसामत्थ ! कारुणिय ! ।। ५ ॥ तुह संपत्ति-रहंगी-रहिओहं नाह ! चक्कवाओव्व । संसारसरे सुइरं भमिओ दीणाई विलवंतो ।। ६ ॥ मह मण-उदयगिरिमी सूरम्मि व संपयं तए फुरिए । आसासिओ तहाहं जह पुव्वि नेव कइयावि ।। ७ ॥ सिद्धंतभावणाहिं भावितो वि हु सयावि अप्पाणं । भूएण व रागेणं होहामि कहं च्छलिज्जंतो ।। ८ ॥ वइरसिलाए नूणं मह हिययं नाह ! निम्मियं विहिणा । जं मरणं नाऊणं सयखंडं फुर(ड)इ न तडत्ति ॥ ९ ॥ जम्मंतर-सय-दुलहं सासणमेयं जिणिंद ! दुहपत्तं । पत्तं पि पुण न पत्तं पमायरिउकिंकरो जमहं ।। १० ।।
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