Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ ६ बर्ष ४४,कि.१ बनेकान्त लयमालाकहा मे कई देशभाषाओं के नाम दिये हैं। इनमें वर्मन का पौत्र था। कीर्तिगिरि (देवगढ़) का किला कीतिगोल्ला के अलावा ये देश गिनाये गये हैं ताजिक, टक्क, वर्मन आमात्य वत्सराज ने १०८९ ई० में बनवाया। कीर, सिंधु, मरु, मध्यदेश, अन्तर्वेद, कोशल, मगध, गुर्जर, मथुरा से विदिशा तक का प्रदेश जैनो के लिए अत्यंत मालव, महाराष्ट्र, आंध्र व कर्णाटक | गोल्ला देश को महत्वपूर्ण रहा है। ईस्वी पूर्व पहली-दूसरी शदी से चौथी छोड़कर अन्य सभी देशों की पहिचान आसानी से की जा सदी ई. तक यह क्षेत्र दिगम्बरो व श्वेताम्बरो दोनों का सकती है। यदि इन देशो को व प्रादिवासी क्षेत्रों को ही केन्द्र था"। इस काल की कई मूर्तियाँ मथुरा और निकाल दिया जाये, तो भारत के बीचों-बीच एक बड़ा विदिशा के आसपास पाई गयी हैं। कई जैन जातियाँ भूखण्ड बचता है । मथुरा से विदिशा तक इस भूखण्ड में इसी क्षेत्र से अलग-अलग समय पर निकली हैं या यहां बोले जाने वाली भाषा ब्रज या बुंदेली कहलाती है। विकसित हुई हैं। इनमे लमेंच, बुढ़ेले", गोलालारे, भाषाशास्त्रीय दृष्टि से ब्रज व बुंदेली बोलियाँ एक ही हैं। खरोमा, माथुर, गोलापूर्व, गोलासिंघारे, जैसवाल", अतः गोल्ला देश-भाषा ब्रज-बुदेली का ही पुरोना रूप धाकड़, पद्मावतीपुरवाल", वरैया३२, गृहपति, परवार एवं होना चाहिए। भोजक ब्राह्मण शामिल हैं। सम्भवता इसी कारण से जैन ५. वर्तमान गुजरात प्राचीन गुजरात के दक्षिण मे ग्रन्थों व लेखों मे इस क्षेत्र के लिए एक विशेष नाम गोल्लाहै। प्राचीन गुजरात के धीमाल आदि स्थान अब राजस्थान देश का प्रयोग किया गया था। मे हैं। प्राचीन मालव जनपद भी वर्तमान मालवा के हमारी गणना से चन्देल राजा देववर्मन ही गोल्लाउत्तर में था। प्राचीन चेदि यमुना के निकट था। चार्य हए । यह अलग विस्तार से विवेचन की बात है"। कलचुगियों के राज्यकाल तक यह दक्षिण की ओर खिसक देववर्मन को सिंहासन पर बैठे कुछ ही वर्ष हुए थे जब फर वर्तमान रीवां, जबलपुर आदि स्थानों तक आ गया। कलचुरि राजा लक्ष्मीकर्ण ने आक्रमण करके चन्देल राज्य कोशल के निवासियों के दक्षिण में आकर वसने से दक्षिण के प्रमख भाग पर अधिकार कर लिया। सम्भवतः देवकोसल वना। इससे पता चलता है कि उत्तर भारत वर्मन के पुत्र की युद्ध में मृत्यु हुई। देववर्मन ने उद्विग्न मे दक्षिण की ओर आकर बसने की प्रक्रिया चलती होकर राज्य त्याग कर दिया व उसके छोटे भाई कीर्ति वर्मन को राज्य मिला । गोपाल नाम के सामंत की मदद ६. वर्तमान ब्रज-बुंदेली भाषी क्षेत्र में अनेक स्थानों से कीर्तिवर्मन ने चन्देल राज्य पुनः स्थापित किया। चंदेल पररवाल जाति अब भी बड़ी संख्या में बसती है"। राज्य की वंशावलियों मे दही भी देववर्मन का नाम नहीं उपरोक्त बातों से पता चलता है कि प्राचीन गोल्ला है, उसका नाम केवल उसके ही दो लेखों में प्राप्त हुआ राष्ट्र या गोल्लादेश मथुरा, ग्वालियर के आसपास कही था। कालांतर में यह दक्षिण की ओर विदिशा के आस गोलापूर्व नाम में "पूर्व" शब्द का क्या अर्थ है ? इसे पास तक फैल गया। नवमीं शती के मध्य मे चंदेलों का किसी-किसी ने पूर्व दिशा सम्बन्धी व किसी-किसी ने पूर्व सीना उदय इमा। चदेल जयशक्ति या जेजा के नाम पर उनका काल सम्बन्धी माना जाता है। यहाँ पर ये बात विचार राज्यक्षेत्र जेजाभुक्ति या जैजाकभुक्ति कहलाया। काला- योग्य हैं। न्तर मे जहाँ-जहाँ बुदेलो का राज्य हआ, वह क्षेत्र बुंदेल- १. मध्यमिका नगरी (राजस्थान) एक के सं० ४८१ खड कहलाया। चन्देलो की राजधानी पूर्वी कोने में होने के लेख में "मालवपूर्वायां" शब्द हैं, परन्तु यहां पर से पश्चिमी भाग अधीनस्थ सामंतों के शासन में रहा। मंतव्य मालवों के सवत के अनुसार है"। ग्वालियर के कच्छपघात काफी समय तक चन्देलों के २. नवलसाह चन्दरिया ने ८४ जातियों की सूची अधीनस्थ थे। दुधई विषय में ग्यारहवी शती के आरम्भ लिखी है जिस मे अजुध्यापूर्व जाति का उल्लेख है"। संभमे सामत देवलब्धि पा शासन था जो चन्देल राजा यशो- वतः यही अब अयोध्यावासी कहलाते हैं। वर्तमान शताब्दीPage Navigation
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