Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 6
________________ ४, वर्ष ४४,कि.. आवेगा तो फिर उसका रूप क्या होगा। हमारा सामा- पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। छोटे-छोटे गांवों में एक जिक स्वरूप कैसा होगा। यह म्ब गहन चिन्तन का विषय दूसरे को देखकर असामाजिक कार्य करने में डर लगने है जिस पर प्रस्तुत निबध मे विचार किया जावेगा। वैसे लगता है जबकि शहरों में वह डर निकल जाता है । और २:वी शताब्दी लगने मे अभी १० वर्ष शेष हैं तथा २१वीं ये सब कारण भी हमारे जातीय बंधन पर बुरा प्रभाव शताब्दी पूरे होने में १०० वर्ष लगेंगे इसलिए ११० वर्षों डाल सकते है। मे हमारी ५ पीढियां निकल जावेगी और जैसी इन पीढ़ियो ४. जातीय वंधन का मुख्ल लाभ विवाह शादी के की शोध होगी जातियों के अस्तित्व पर भी वैसा ही प्रभाव नियमों का पालन करना है। गरीब अमीर सभी एक पड़ेगा। दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं। गरीब की लड़की स्वजातीय १. समाज मे उच्च शिक्षा का और अधिक प्रचार । मीर के घर चली जाती है और अमीर की लड़की का होगा । प्रजातत्र होने के कारण सबको उच्च शिक्षा प्राप्त सबंध गरीब युवक के साथ हो जाता है लेकिन अब करने का समान अवसर मिलेगा। मेडिकल, इंजीनियरिंग, हमारे युवको मे पैसे के प्रति आकर्षण है। ऊचा से ऊंचा छोटे-बड़े उद्योगों मे, व्यापारिक संगठन, राज्य एव केन्द्र दहेज लेना चाहते है इसके अतिरिक्त सुन्दर से सुन्दर सरकार की नौकरियों मे उच्च अधिकारी, विदेशो मे लडकी की तलाश की जाती है। इसलिए उसे जहां भी परिभ्रमण, भोग-विलास ऐश आराम की सामग्री में सीमा- अधिक पैसा मिले अथवा सुन्दतम लड़की मिले वहीं वह तीत वृद्धि, खान-पान में बदलाव, जैसे साधन हमें प्राप्त अपनी जातीय सीमाओं को तोड़कर भी वियाह करना होगे। ये सब चिन्ह अथवा कारण भविष्य में जातियो के चाहने लगा है। हमारी इस मनोवृत्ति मे भी दिन-प्रतिस्वरूप में बदलाव की अपेक्षा रखते है । दिन वृद्धि हो रही है और इस मनोवृत्ति के कारण भी जातीय स्वरूप कितना सुरक्षित रह सकेगा यह चिन्तनीय २. दूसरा कारण युवकों मे जैनत्व के प्रति आस्था विषय है। होने के उपरान्त भी जाति बंधन को वे अभी दबी जबान ५. धनाढ्य, उच्चाधिकारी, विदेशो में भ्रमण करने में स्वीकार करते हैं । सम्पूर्ण जैन एक हैं। एक ही उनकी वाले अथवा विदेशों में रहने वाले जैन बंधु जाति बंधन मति है इसलिए उनकी कौन-सी जाति है उनका क्या को अच्छा नही मानते । वर्तमान में जितने भी जातीय गोत्र है । मा कौन से गोत्र की है इन सब बातो की ओर सीमाओ को तोड़ने के उदाहरण ऐसे घरों में अधिक व जाने में हिचकिचाहट करने लगे है। युवको के ये विचार मिलेंगे। हमारी इस मनोवृत्ति मे धीरे-धीरे वृद्धि हो रही भी जाति बधन पर बुरा असर डालने वाले है। और है। २. वी शताब्दी में यह हमारी जाति प्रथा पर कितना २१वी शताब्दी में जातियो के स्वरूप पर प्रश्न चिन्ह । ह प्रभाव जमा सकेगी यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। लगाते है। ६. लेकिन इतना होने पर भी समाज की छोटी ३. जैन समाज पहिले गांवो में अधिक संख्या में था जातियो पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि वहाँ तथा नगरो मे बम रहना पसन्द किया जाता था लेकिन जातीय सभाओ का समाज पर कन्ट्रोल बना रहेगा और वर्तमान मे छोटे-छोटे गांव उजड़ने लगे है। व्हां के जैन उस जाति के व्यक्ति अपनी जातीय सीमाओं को तोड़ने में वन्धु रोजगार की तलाश के लिए शहरो की ओर दौड आगे आना नही चाहेगे । रहे है इमलिए आज कलकत्ता, बम्बई, देहली, जयपुर, ७. यह भी सही है कि जातियां कभी समाप्त नहीं इन्दौर, जबलपुर, सागर, कानपुर जैसे बड़े न रों में जैन होंगी। जब समस्त हिन्दू समाज में जातियां हैं और वहाँ जनसख्या बहुत बढ़ गई है। नगरों एवं महानगरों में रहने भी जातीय सीमाओ मे रहना अच्छा समझा जाता है तो के कारण हम स्वच्छन्द मनोवृत्ति के हो गये है। खानपान, फिर जैन मनाज म भी जातिया पूर्ववत च ती रहेगी। हन-सहन, धामिक वट्टरता, एक दूसरे की लाज-शर्म सब (शेष पृ० (प.)Page Navigation
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