Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 4
________________ १२वीं शताब्दी में जैन जातियों का भविष्य ___D० कस्तूरचन्द कासलीवाल दिगम्बर जैन समाज में ८४ जातियां मानी जाती है। गये। उन्होंने यह भी लिखा है कि ८४ जातियों के नामों प्राचीन जैन कवियों ने जब जातियों की संख्या और नाम को उन्होंने ५-७ पोथियों को देखने के पश्चात् लिखे हैं । गिनाये तो उन्होने भी उसे ८४ नामों तक ही सीमित यदि इसमें कहीं भूल हो तो पाठक गण उसे सुधार सकते रखा । लेकिन जब मैंने खण्डेलवाल जैन समाज का वृहद् हैं :इतिहास लिखने के लिए जैन जातियों के नामों की खोज पोथी पांच सात को देखि, करि विचार यह कीनों लेख । प्रारम्भ की तो पता चला कि प्रत्येक कवि की सूची में या मे भूल्य चुक्यो होत, ताहि सुधारी लेहु भावि जोय ।।६०० कुछ प्रमुख जातियों के नाम तो एक-दूसरे से मिलते हैं इसी तरह सन् १९१४ में एक जैन गइरेक्टरी का लेविन अधिकांश नाम ऐसे हैं जिनको दूसरे विद्वानों ने का दूसर विद्वाना न प्रकाशन हुआ था। उसमे जैन जातियों के ८७ नाम नहीं गिनाये है। इस प्रकार जैन जातियों के नामों की गिनाये है और प्रत्येक जाति की संख्या भी लिखी है सख्या बढ़ते-बढ़ते २३७ तक जा पहुची।' इस सम्बन्ध में जिसके अनमार जिसके अनुसार जैन समाज की पूरी संख्या ४५०५८४ और भी खोज की आवश्यकता है। हो सकता है इस संख्या लिखी है । लेकिन यह सख्या सही प्रतीत नही होती क्योंकि में और भी वृद्धि हो जावे। लेकिन यह भी आश्चर्य है सन् १९०१ की जनगणना में समस्त जैनों की संख्या कि संस्कृत विद्वानो ने जातियों के नामों को गिनाने वाली १३,३४,१८८ आई थी इसलिए इस दृष्टि से भी दिगम्बर किसी कृति की रचना नहीं की। जैन समाज की सख्या ७ लाख से कम नहीं होनी चाहिए। महाकवि ब्रह्म जिनदास प्रथम हिन्दी कवि हैं जिन्होंने जैन डाइरेक्टरी मे गिनाई गई ८७ जातियों मे से नतन १वी शताब्दी मे चौरासी जाति जयमाल लिखी।' इसके जैन. बडे ले. धवल जैन, भवसागर, इन्द्र जैन, पुरोहित, पश्चात कविवर विनोदीलाल एवं पं० बरुतराम शाह का क्षत्रिय, सगर, मिश्र जैन, संकवाल, गांधी जैसे नाम वाली नाम आता है जिन्होंने फूल माल पच्चीसी में इन जातियों जातियों को गिनाया गया है जिनमें प्रत्येक की संख्या ५० के नामो को गिनाया। बखतराम साह ने इन बुद्धि विलास से भी कम है। तगर जाति की संख्या केवल ८ बताई गई मे जातियों के नामों को गिनाकर महत्वपूर्ण कार्य किया।' है इसी तरह दूसरी जातियां भी हैं। ब्र० जिनदास ने जिन ८४ जातियों का नामोल्लेख किया तया का नामोल्लेख किया हम यह कह सकते हैं कि दिगम्बर जैनों में ८४ है उनम बिनोदीलाल के गिनाये हुए नामों में केवल २८ जातियां मानने की परम्परा रही है किन्तु उनके नामों में जातिवो . नाम मिलते हैं। उन जातियो के नाम ऐसे हैं समानता नही रही। क्षेत्र और प्रदेश के अनुसार जातियाँ जिनका उल्लेख वेबल ब्रह्म जिनदास ने ही किया है। वनती बिगडनी रही हैं। इसके अतिरिक्त और भी ऐसी विनोदीलाल ८४ जातियों के नामों के स्थान पर केवल बहुत-सी जैन जातियां थीं जिनके अस्तित्व का आज पता ६७ जातियो के नाम हो गिना सके हैं। इसी तरह बस्त. भी नहीं लगता। मेडतवाल जाति पहिले दिगम्बर जैन राम साह द्वारा ८४ जातियो के पूरे नाम गिनाने पर भी जाति थी। बारा (राजस्थान) में नगर के बाहर जो ४६ जातियो के नाम तो ऐसे है जिनको न तो ब्रह्म जिन. नसियां है उसमें सवत् १२२४ की लेख वाली प्रतिमा को दास गिना सके है और न विनोदीलाल ने गिनाये हैं। किसी मेडनवाल वन्धुओं ने प्रतिष्ठित कराई थी। ब्रह्म वे तो हंबड जाति जैसी प्रसिद्ध जाति का नाम भी भूल जिनदास एवं बस्तराम साह दोनों ने मेड़तवाल जाति काPage Navigation
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