Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ वर्ष ४४ किरण १ } प्रोम् ग्रर्हम् टकान परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां बिरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वीर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर - निर्वाण संवत् २५१६, वि० सं० २०४८ अध्यात्म-पद चित चितके चिदेश कब, अशेष पर बमूं । दुखदा अपार विधि- दुचार - को, चमूं दमूं ॥ चित० ॥ तजि पुण्य-पाप पाप आप, आप में रमूं । { कब राग-आग शर्म - बाग- वाघनी शमूं ॥ चित० ॥ वृग-ज्ञान-पान तें मिथ्या अज्ञानतम दमूं । कब सर्व जीव प्राणिभूत, सत्त्व सौं छमूं ॥ चित० ॥ जल- मल्ल-कल सुकल, सुबल्ल परिनमुं । दलकें विशल्लमल्ल कब, अटल्लपद पमूं ॥ चित० ॥ कब ध्याय अज-अमर को फिर न भव विपिन भमूं । जिन पूर कौल 'दौल' को यह हेतु हौं नमूं ॥ चित० ॥ - कविवर दौलतराम कृत जनवरी-मार्च १६६१ भावार्थ - हे जिन वह कौन-सा क्षण होगा जब में संपूर्ण विभावों का वमन करूँगा और दुखदायी अष्टकर्मों की सेना का दमन करूँगा । पुन्य-पाप को छोड़कर आत्म में लीन होऊँगा और कब सुखरूपी बाग को जलाने वाली राग-रूपी अग्नि का शमन करूँगा । सम्यग्दर्शन - ज्ञानरूपी सूर्य से मिथ्यात्व और अज्ञानरूपी अंधेरे का दमन करूँगा और समस्त जीवों से क्षमा-भाव धारण करूँगा । मलीनता से युक्त जड़ शरीर का शुक्ल ध्यान के बल से कब छोडूंगा और कब मिथ्या - माया-निदान शल्यों को छोड़ मोक्ष पद पाऊँगा । मैं मोक्ष को पाकर कब भव-वन में नहीं घूमूंगा ? हे जिन, मेरी यह प्रतिज्ञा पूरी हो इसलिए मैं नमन करता हूँ । OD

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