Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ श्री कुन्दकुन्द का असली नाम क्या था ? क्या वे पल्लीवाल जाति के थे ? 0 श्री रतनलाल कटारिया आ० कुन्दकुन्द के ५ नामों मे पद्मनंदि नाम तो जीवन चरित्र देते हुए लिखा है कि-इनका जन्म मालवा दीक्षावसर का है और कुन्दकुन्द नाम गांव के नाम का देश में बंदी कोटा के पास बारां मे हुआ था यह जाति के द्योतक है व्यक्ति नाम नहीं। जैसे "सर्वपल्ली राधा पल्लीवाल थे। चारित्रधर्मप्रकाश (सन् १९७६ सीकर से कृष्णन" मे सर्वपल्ली गाव का नाम है । प्रसिद्ध फिल्मकार प्रकाशित) के अन्त मे आचार्यों की पट्टावली दी है उसमें बी. शांताराम मे बी वणन्ने गांव का नाम है। अनेक प्राचीन आचार्यों की जाति बताते हुए कुन्दकुन्दादक्षिण मे गांव का नाम पहिले बोलने की पद्धति है। चार्य को भी पृष्ठ ३१० पर "पल्लीवाल" जाति का लिखा अतः कुन्दकुन्द (कोण्ड कन्द) गांव का नाम है इसके आगे है (यही बात प्रस्तावना पृ० ७ पर भी लिखी है) "महाव्यक्ति नाम रहता है वह बोलने की सुविधा-संक्षिप्ती वीर जयती स्मारिका १६८८" के पृ. २-६६ पर डा० करण से लुप्त हो गया है। इधर उत्तर प्रान्त मे गांव का कस्तूरचन्द जी काशलीवाल, जयपुर ने भी यही सब नाम जो गोत्रत्व को लिए हए है वह नाम के बाद में बोलते लिखा है। हैं जैसे पाटणी" "गदिया' आदि । किन्तु भगवान् कुन्दकुन्द दक्षिण देश (आन्ध्र-द्रविड पाटणी जी" बोलने से असली नाम का पता नही प्रदेश) में पैदा हुए है। उन्हें बारां (राजस्थान) का बताना लगता वैसे ही "कुन्दकुन्द" से सिर्फ गांव का नाम दयोतित किसी गहरी भूल का परिणाम है। उसका खुलासा इस होता है व्यक्ति नाम नही, दीर्घ काल से असली नाम लुप्त प्रकार है कि.... "ज वदीव पण्णत्ति" के कर्ता पद्मनन्दि वि० हो गया है उसकी खोज होनी चाहिए । सं० १०३४ मे हुए है वे बारा नगर के थे। इस विषय मे कुन्दकुन्द के शेष नाम-वक्रग्रीव, गृद्धपिच्छ, ऐला- पं० नाथूराम जी प्रेमी ने "जैन साहित्य और इतिहास" चार्य आदि भी सही प्रतीत नही होते कल्पित और अन्य (द्वि० सस्करण पृ० २५६) मे लिखा है कि---"ज्ञानप्रबोध से मबद्ध ज्ञात होते है। नामक पद्य बद्ध भाषा ग्रन्थ मे कुन्दकुन्द की कथा दी है धोषेण वृषभसेन, कोण्डेशः शंकरश्च दृष्टान्ताः ॥११८॥ उसमे कुन्दकुन्द को इसी बारां के धनी कुन्दश्रेष्ठी और रत्नकरण्ड श्रा० के इस श्लोक मे जो शास्त्रदान के रूप मे कुन्दलता का पुत्र बताया है। पाठक जानते है कि कुन्द"कोण्रेश" का दृष्टान्त दिया है वह भी कन्दकन्द प्रभु से कुन्द का एक नाम पद्मनन्दि भी है। जान पडता है किही सबद है। यहाँ "कोण्डकन्द" ग्राम का सक्षिप्त नाम जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के कर्ता पमनन्दि को ही भ्रमवश कुन्दकोण्ड और उसके ईश --प्रभु इस प्रकार कोण्डेश." दिया कुन्द समझ कर ज्ञानप्रबोध के कर्ता ने कुन्दकुन्द का जन्मगया है। इसीलिए बाद के आचार्यों ने इसकी कथा मे स्थान कर्नाटक के कोण्ड कुन्दपुर के बदले बारा बतला कुन्दकुन्द के दीक्षा नाम पपनन्दि मुनि का उल्लेख किया दिया है। कुन्दकुन्द नाम की उपपत्ति बिठाने के लिए कन्दहै इससे यह दृष्टान्त कुन्दकुन्दाचार्य को सिद्ध करता है। श्रेष्ठी और कुन्दलता की कल्पना भी उन्ही के उर्वर इससे यह भी प्रमाणित होता है कि-कुन्दकुन्द, समन्त- मस्तिष्क की उपज है।" भद्राचार्य से पूर्व हुए है। बारां मे इन्ही पद्मनन्दि की एक निषिद्या (चरणचिह्न) "बृहज्जैन शब्दार्णव" भाग १ (सन् १६२४) पृष्ठ भी है। कुछ विद्वानों ने भ्रमवश उसे भी कुन्दकन्द की ११८ पर "अगपाहुड" के वर्णन मे कुन्दकुन्दाचार्य का बता दी है। जब दक्षिण के कुन्दकुन्द को बारा (राजस्थान)Page Navigation
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