Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ कनकनन्दि नाम के गुर बसीद नामक जिनालय के लिए दान दिया था । संभवतया तीनों क्रमांको पर उल्लिखित गुरु-शिष्य परम्परा में कुछ यह कनकनन्दि क्रमांक (७) पर उल्लिखित कनकनन्दि से विसगति भी प्रतीत होती है, संभावना यही है कि इन अभिन्न हैं, यद्यपि क्रमाक (७) में श्रीनन्दि को उनका तीनो क्रमांको मे उल्लिखित कनकनन्दि विद्यदेव अभिन्न शिष्य और यहा प्रशिष्य बताया गया है। इन कनकनंदि हैं। इनका समय लगभग ११००-११ भट्टारक का समय क्रमांक (४) और (५) पर उल्लिखित अनुमानित है। कनकनन्दियों के मध्यवर्ती रहा प्रतीत होता है। [श्री देसाई (१२) श्रवण बेलगोल मे चामुण्डराय बसदि में प्राप्त को उक्त पुस्तक पृष्ठ १०७] ११२० ई. के एक शिलालेख मे उल्लिखित कनकनन्दि (8) कनकनन्दि विद्यदेव, जो शुभचन्द्रदेव की शिष्य मुनीश्वर जो मुल्लूर या मल्लूर (कुर्ग में) के निवासी थे परम्रा में हुए और उन मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव के गुरु थे और होयसल राज्य के प्रधान मन्त्री गंगराज की माता जिनका गृहस्थ शिष्य केतब्बे था जिसने १११० ई० मे पोचिकब्बे, जिसने ११२० ई० में समाधि-मरण किया था. भूमि, मकान, आदि दान किये थे। [एपीग्राफिका कर्णा- के पति, गंगराज के पिता और नपकाम होयसाल के मंत्री टका, भाग सात, ८९; जैन शिलालेख संग्रह, भाग दो, एवं सेनानायक एचिगांक अपरनाम बुधमित्र के गरु थे। शिलालेख २५१] [जैन शिलालेख संग्रह, भाग एक, शिलालेख ४४, मैडिवल (१०) मूलसंघ-क्राणूरगण के अनन्तवीर्य सिद्धान्ति के जानज्म पृष्ठ ११६ प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष शिष्य और श्रुतकीर्तिबुध एवं मुनिचन्द्र अतिप के सधर्मा महिलाये पृष्ठ १४२] कनकनन्दि विद्य। मुनिचन्द्र के शिष्य माधवचन्द्र को (१३) ११२३ ई. के एक शिलालेख में उल्लिखित कनकनन्दि पण्डितदेव, जो देसीगण-पुस्तकगच्छ-कुन्दकुन्दा१११२ ई० में दान दिया गया था। इन कनकनन्दि के गुरु या (अधिक संभावना है) प्रगुरु प्रभाचन्द्रदेव १०६७ ई० वय को परम्परा में कोल्लापुर (कोल्हापुर) की श्री रूपमे विद्यमान थे। [एपीग्राफिका करर्णाटका, माग सात, नारायण वसदि के आचार्य माघनन्दि सिद्धान्तक्रवती के ६४, जैन शिलालेख संग्रह, भाग दो, शिलालेख २६६] शिष्य तथा श्रुतकीति विद्य, चन्द्र कीति और प्रभा चन्द्र पण्डितदेव के सघर्मा, 'वादीभसिंह' आदि उपाधिधारी (११) ११२१ ई० के एक शिलालेख में उल्लिखित महावादी थे। [जैन शिलालेख मग्रह, भाग दो, शिलालेख कनकनन्दि विद्य । लेख मे उनको गुरु परम्परा इस प्रकार २८०; इंडियन एन्टीक्वेरी, भाग चांदह] मिलती है--मूलसघकोण्डकुन्दान्वय-क्राणूरगण-मेषपाषाण. (१४) देवकीति पडितदेव के ११६३ ई० के ममाधिगच्छ के महावादी प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य माघ स्मारक लेख में उल्लिखित कनकनन्दि योगीश्वर, जो नन्दि सिद्धान्तदेव थे, जिनके शिष्य प्रभाचन्द्र द्वितीय, माघनन्दि विद्य, श्रतकोति, देवचन्द्र तथा उक्त देवकीर्ति अनन्तवीर्य और मुनिचन्द्र थे। मुनिचन्द्र के शिष्य या पन्डितदेव के सधर्मा थे। [जैन-शिलालेख संग्रह, भाग सधर्मा श्रुतकीति तथा वह कनकनन्दि विद्य थे। जिन्हें एक, शिलालेख ४०] राजदरबारो में त्रिभुवनमल्ल वादिराज' कहा जाता था। (१५) श्रवण बेलगोल की चामुन्डराय णिला पर इनके सधर्मा माधवचन्द्र थे जिनके शिष्य बालचन्द्र यतीन्द्र उत्कीर्ण एक नामांकित मूनि मुनि (काल अनिश्चित) मे थे । [जैन शिलालेख सग्रह, भाग दो, शिलालेख] उल्लिखित श्री कनकनन्दि देवा [जैन शिलालेख संग्रह, यद्यपि ऊपर क्रमांक (१) पर कनकनन्दि विद्यदेव भाग एक, शिलालेख २५१] को मुनिचन्द्र सिद्धान्तदेव का गुरु, क्रमांक (१०) पर मुनि- (१६) कोल्लापूर (कोल्हापूर) के सामन्त जिनालय चन्द्र बतिय का मधर्मा और क्रमांक (११) पर मुनिचन्द्र के कनकनन्दि मुनि, जिनके शिष्य प्रभाचन्द्र थे (समय का शिष्य या सघर्मा उल्लिखित किया गया है। और इन १२७६ ई.)। [श्री देसाई की पुस्तक पृष्ठ १५१]Page Navigation
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