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आनन्द प्रवचन : भाग ८
परिपाटी नहीं थी । केवल श्रवण परम्परा से ही उनके उपदेश सुरक्षित रखे जाते थे । श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण के ६८० वर्ष बाद हमारे जैन शास्त्रों का लेखनकार्य प्रारम्भ हुआ था । अगर श्री गणधरगौतम-स्वामी द्वारा रचित यह ग्रन्थरत्न होता तो अंगशास्त्रों में नहीं तो कम से कम उपांगशास्त्रों में इसकी गणना होती। मगर उपांगशास्त्रों में इसकी गणना हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता। इससे स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ के रचयिता गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम तो नहीं हो सकते । किन्तु अन्य कोई श्री गौतमऋषि के नाम से श्रमणपरम्परा के कोई महाभाग मुनि इसके रचयिता रहे हैं।
'इसिभासियाई' नाम का एक प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध होता है, जिसमें श्रमणसंस्कृति की परम्परा के विभिन्न ऋषियों के वचनों का विविध विषयों पर सुन्दर संकलन है। सम्भव है, ये गौतमऋषि 'इसिभासियाई' के प्रवक्ता ऋषियों में से कोई एक प्रख्यात
और परोपकारी ऋषि रहे हों; जिन्होंने अपने अनुभवपूर्ण बहुमूल्य वचनरत्नों को इस प्रकार के एक ग्रन्थरूपी हार में पिरोकर प्रस्तुत किये हों । जो भी हो, श्री गौतमऋषि श्रमणसंघीय परम्परा के एक महान् जीवन-पारखी श्रमण रहे हैं, जिन्होंने 'जीवन की परख' करने के लिए अपनी श्रमणसंस्कृति के अनुगामी कुल (श्रमणवर्ग और सद्गृहस्थवर्ग) के लिए उत्तम हित शिक्षाएँ दी हैं।
संस्कृत भाषा में 'कुलक' उसे कहते हैं जिसमें लगातार कई श्लोक एक दूसरे से सम्बन्धित हों । जहाँ एक श्लोक में रचयिता अपनी विवक्षित बात को पूरी नहीं कर सकता, वहाँ वह 'कुलक' का प्रयोग करता है, जो कई श्लोकों में जाकर पूर्ण होता है । इसलिए कुलक का संस्कृत छन्द की दृष्टि से स्पष्ट अर्थ हुआ—एक ही विषय का शृंखलाबद्ध श्लोकसमूह । महर्षि गौतम ने विश्व के विविध जीवनों को अपनी श्रमण परम्परा की नीति की कसौटी पर परख कर जिज्ञासुओं के समक्ष उनको सूत्ररूप में प्रस्तुत कर दिये हैं कि कौन-सा जीवन किस प्रकार का होता है ? कौन-सा जीवन हेय, ज्ञेय और उपादेय है ? बीस गाथाओं में आपने 'जीवन की परख' प्रस्तुत कर दी है। इन बीस गाथाओं की कड़ी एक दूसरी से जुड़ी हुई है, इसलिए इसे 'कुलक' नाम दे दिया गया है।
- मैं एक दूसरी दृष्टि से 'कुलक' का रहस्य आपको समझाता हूँ। कुलक का एक अर्थ यह भी सम्भव है- 'कुल-परम्परागत हित शिक्षाओं का पिटारा'। श्री गौतम ऋषि स्वयं श्रमण भगवान् महावीर की कुलपरम्परा के थे। श्रमण भगवान् महावीर के कुल की क्या नीतिरीति थी? उस कुल में किस प्रकार का जीवन हेय, ज्ञेय या उपादेय समझा जाता था ? उस कुल में जीवन की परख किस प्रकार की जाती थी ? इस प्रकार श्री गौतममहर्षि अपने कुल परम्परा के अनुगामियों को कुल की नीतिरीति अथवा कुल के आचार-विचार की याद दिलाएँ, उन्हें जीवन के विकट प्रसंगों में भी अपने कुल का स्मरण कराकर उसके आचार-व्यवहार का उपदेश दें, और इस
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