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हो चुका है । यदि आज से बहुत वर्षों पहले यह कार्य प्रारम्भ हो गया होता तो अभी तक जनता काफी लाभान्वित हो चुकी होती । आनन्द-प्रवचन के प्रथम भाग एवं द्वितीय भाग प्रकाशित हो चुके हैं और अब तृतीय भाग प्रकाशित हो रहा है । इस तीसरे भाग में जीवनोपयोगी तथा हृदय स्पर्शी अनेक विषयों का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है । जैसे—क्रिया, ज्ञान और श्रद्धा । पुरुषार्थ से सिद्धि, निद्रा त्यागो, अल्प भोजन और ज्ञान साधना, मौन की महिमा, सत्संगति दुर्लभ संसारा, ज्ञान प्राप्ति का साधन : विनय, तपो हि परमं श्रेयः, असार-संसार, स्वाध्याय: परम तप, दीप से दीप जलाओ, इद्रियों को सही दिशा बताओ, तपश्चरण किसलिए ? विनय का सुफल, सत्य का अपूर्व बल, आत्म-साधना का मार्ग, मुक्ति का मूल : श्रद्धा आदि-आदि अनेक नैतिक एवं धार्मिक विषय इस तृतीय भाग में संकलित एवं सम्पादित किये गए हैं । आनन्द-प्रवचन के तृतीय भाग में संपादक ने जो श्रम किया है, निश्चय ही वह सफल हो गया है । प्रकाशक ने इन प्रवचनों का प्रकाशन करके धार्मिक जनता के मानस में सुसंस्करों का जो बीज - वपन किया है, वे अवश्य ही धन्यवाद के पात्र हैं । परम स्नेही मुनिवर पं० प्रवर श्री कुन्दनऋषिजी ने इतने सुन्दर प्रवचनों का संकलन कराने का जो श्रेय किया है, उनके लिए मैं परम प्रसन्न हूँ । आशा है, भविष्य में भी वे अपने इस प्रयत्न को गतिशील रखेंगे । प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक श्रीचन्द्रजी सुराणा 'सरस' के परिश्रम ने एवं उनकी मुद्रण कला ने प्रस्तुत प्रकाशन में निश्चय ही सोने में सुगन्ध का कार्य किया है । ये सभी सहयोगी बड़े भागी हैं, इस अर्थ में कि इन्होंने एक महापुरुष की वाणी को सामान्य जनता तक पहुँचाने का सफल प्रयास किया है । विजयमुनि शास्त्री
जैन भवन
मोती कटरा, आगरा २६-१२-७२
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