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क्षुद्र कुछ अधिक गरजता है
क्षुद्रता अधिक मुखर होती है और जो जितना महान होता है, विराट होता है, वह उतना ही प्रशान्त मौन ! बड़प्पन दूसरों के द्वारा बोली जाने वाली वस्तु है, अपने द्वारा बोली जाने वाली नहीं ।
भरा-पूरा घड़ा नहीं छलकता, अधूरा - आधा घड़ा छलकता है ।
“सम्पूर्ण- कुम्भो न करोति शब्द, अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम् । "
अगाध जल-संचारी मत्स्यराज मगरमच्छ अपने जल-विहार जन्य आनन्द का कहाँ हल्ला करता है ? परन्तु तलैय्या के कीचड़ से भरे गन्दे पानी को पाकर क्षुद्र मेंढक टर्र-टर्र की कर्ण- स्फोटक ध्वनि से आसमान सर पर उठा लेता है । " अगाध जल-संचारी,
गर्व नायाति रोहितः । पीत्वा
भेको
कर्दम-पानीयं रटरटायते ॥ *
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बस एक बात और ! कांसी का पात्र बजता है, से ने का नहीं। मनुष्य यदि असली सोना बनना है, तो उसे बजना नहीं चाहिए, टनटनाना नहीं चाहिए । भगवान् महावीर कहते हैं— 'अजंपिरे' रहो ।
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चालक अच्छा होना चाहिए
शरीर इन्द्रिय और मन के सम्बन्ध में दो प्रकार के विचार मिलते हैं। कुछ लोग कहते हैं- 'ये अच्छे हैं' और कुछ लोग कहते हैं- 'ये बुरे हैं'। कुछ का कहना है— मानव आत्मा को, ये डुबाने वाले हैं, तो कुछ का कहना है— ये तारने वाले हैं। यही अच्छे-बुरेपन की बात धन-सम्पत्ति, परिजन परिवार, पद-प्रतिष्ठा और यहाँ तक कि ज्ञान-विज्ञान के सम्बन्ध में भी चर्चा का विषय बनी हुई है ।
अमर डायरी
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