________________
चिन्तन की चिनगारियाँ
प्रातःकाल का स्वर्णिम आभा से आलोकित समय है। शीतल, मन्द, सुगन्ध समीर बह रहा है। प्रकृति नव जागरण की मादक अँगड़ाई ले रही है। आप पुष्पाराम में चक्रमण कर रहे हैं। जिधर देखते हैं, उधर ही मोहक सुषमा लिए खिलते फूल दृष्टिगत होते हैं, और उनकी भीनी-भीनी सुरभि तन-मन को आनन्द-विभोर कर देती है। फेफड़ों में प्राणवायु की संजीवनी का संचार होता है और मुरझाती जीवन - कलिका पुनः तरोताजा हो जाती है।
साधक जब अपने आराध्य वीतराग महापुरुषों का स्मरण करता है, उनके भाव - चरणों में अपने को अर्पण करता है, उनके भव्य विराट सांधना - रूप पुष्पोद्यान में विचरण करता है तो वह भी ठीक ऐसी ही विलक्षण आनन्दानुभूति एवं नव जीवन की प्राणदा-शक्ति का सुखद स्पर्श करता है । कभी उसे सत्य के विराट एवं भव्य रूप का दर्शन होता है, तो कभी उसे अहिंसा, करुणा और वात्सल्य की. मोहक सुगन्ध महकती मिलती है । अविचल श्रद्धा, निर्मल विश्वास और सहज सरल भक्ति भाव की अमोघ संजीवन शक्ति का आध्यात्मिक जीवन में वह दिव्य संचार होता है कि साधक का मुरझाया हुआ जीवन-पुष्प पुनः खिल उठता है, महक उठता है, और सदा सर्वदा के लिए तरो-ताजा हो जाता है 1
Jain Education International
¤
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org