Book Title: Amar Diary Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra View full book textPage 8
________________ ध्वनि-वर्धक यन्त्र का जब प्रश्न आया, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “जहाँ तक सैद्धान्तिक प्रश्न है— मैं विद्युत् को अचित्त मानता हूँ और इसके लिए कोई विचार चर्चा करना चाहें, तो मैं तैयार हूँ।” परन्तु जब समझौते का मार्ग ढूँढ़ा जाने लगा, तब आपने कहा - " जब बिजली को सचित्त मानने वाला पक्ष यह कहता है कि हमारे पास आगम- प्रमाण है और अचित्त मानने वाला पक्ष भी अपने पास आगम- प्रमाण होने का दावा करता है, फिर हमारे श्रद्धेय पुरुष आगम-चर्चा से क्यों कतराते हैं। जब प्रमाण हैं, तो सामने आने चाहिए ।" परन्तु इतने पर भी कोई चर्चा के लिए तैयार नहीं हुआ, तो समझौते का मार्ग अपनाया गया। समझौते के मार्ग में पहले नये विचारक कुछ अड़े तो बाद में पुराने विचारक कुछ पीछे हटने लगे । समस्या सुलझ नहीं सकी। एक संत ने अनशन करने की धमकी भी दी, फिर भी गुत्थि उलझी ही रही । अन्त में कविश्री जी ने दोनों पक्षों से विचार-विमर्श किया और थोड़े ही समय में राह निकाल ली गई । सचमुच में कवि जी सभी सम्मेलनों में सब के आशा केन्द्र रहे हैं। उनकी अद्भुत सूझ-बूझ ने संघ की नैया को सदा सुरक्षित रखा है। अनेक तूफान आए और अनेक बार संघ की नौका संकटों के भँवर में जा फँसी, परन्तु कुशल नाविक ने उसे हर बार उबारा है, बचाया है । इस समय भी संघ संकट की परिस्थिति से गुजर रहा है । विघटन का राहु उसे ग्रसने को तैयार है । जहाँ-तहाँ स्वच्छन्द रूप से सम्बन्ध विच्छेद की घटनाएँ घट रही हैं— जो संघ के लिए निराशा का वातावरण लिए हुए हैं । उसमें केवल कविजी ही आशा के प्रकाश स्तम्भ हैं । गत वर्ष सम्मेलन होने वाला था, परन्तु उनका वर्षावास भगवान महावीर की साधना भूमि राजगृह में होने के कारण उनका सम्मेलन में ठीक समय पर पहुँचना कठिन था और वे सम्मेलन के पूर्व भूमिका शुद्धि की भी अपेक्षा रखते थे । अत: गत वर्ष उसे स्थगित कर दिया गया। इस वर्ष आचार्य श्री जी ने फाल्गुन शुक्ला तृतीया को अजमेर में सम्मेलन करने की घोषणा की। श्रद्धेय कवि श्री जी अस्वस्थ होते हुए भी पहुँचने का संकल्प रखते हैं। समस्त संघ की आँखें भी आपकी ओर लगी हुई हैं। -मुनि समदर्शी प्रभाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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