Book Title: Agam Nimbandhmala Part 01
Author(s): Tilokchand Jain
Publisher: Jainagam Navneet Prakashan Samiti

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Page 11
________________ आगम निबंधमाला पृष्टांक 3000 (10) (14) निबंधांक अनुक्रमणिका नवकार मंत्र एक चिंतन तथा नमस्करणीय समीक्षा जैन इतिहास संबंधी ज्ञान-विज्ञान भाषाविवेक आगम आधार से जैनागम समुत्पत्ति तथा परंपरा भगवान महावीर की शासन परम्परा निग्रंथ निग्रंथियों के आत्म परीक्षण की अनुपम परिज्ञा नियंठा स्वरूप : छ नियंठों का विशद व्याख्यान संयम उन्नति के 10 आगम चिंतन कण साध्वाचार के हितावह आगम निर्देश शिथिलाचार व शुद्धाचार का स्वरूप (विस्तार से) (11) आत्मनिरक्षणीय कुछ दूषित प्रवृत्तियों की सूचि (12) दूषित आचार वालों को विवेक ज्ञान (13) शुद्धाचार वालों को विवेक ज्ञान पासत्था आदि स्वरूप : भाष्य के आधार से (15) पासत्था भी निग्रंथ एवं शुद्धाचारी भी शिथिलाचारी (16) वंदनीय अवंदनीय का स्थूल एवं सूक्ष्मज्ञान (17) शिथिलाचार निबंध संबंधी शका-समाधान (18) आगम अतिरिक्त श्वेतांबर गच्छों की समाचारियाँ (19) दीक्षार्थी एवं दीक्षागुरु की योग्यता तथा कर्तव्य(छेद.) (20) आचार्य आदि प्रमुखों का उत्तरदायित्व (दशा.) (21) आचार्य एवं शिष्यों के परस्पर कर्तव्य(दशा.) (22) आचार्यपद की आवश्यकता एवं आठ संपदा(छेद.) 8 संपदाओं की उपयोगिता एवं विवेक (दशा.) आगमोक्त सात पदवियाँ एवं उनकी उपयोगिता(छेद.) सिंघाडा प्रमुख की योग्यता एवं विवेक (छेद.) (26) . . आचार्य की योग्यता का संक्षिप्त परिचय(छेद.) उपाध्याय की योग्यता का संक्षिप्त परिचय(छेद.) आचार्य-उपाध्याय आदि पदो की योग्यता का विस्तत जान (29) आचार्य आदि के बिना रहने का निषेध(छेद.) आचार्य उपाध्याय पद देने एवं हटाने का विवेक 10 प्रायश्चित्तों का स्वरूप एवं विश्लेषण / (32) 6 महीने से अधिक कोई भी प्रायश्चित्त नहीं (छेद.) (33) उत्सर्ग अपवाद मार्ग का विवेक ज्ञान (कवि अमरमुनि उपा.) (34) साधु-साध्वी की परस्पर सेवा-आलोचना निषेध(छेद.) (35) श्रुत अध्ययन एवं भिक्षु पडिमा (अंत.-व्यव.) [11 / 107 110 113 114 115 117 120 (24) 122 123 124 129 134 136 140 145 148 150

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