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આગમત इस जमाने में कितनेक पाप करते हुवे भी सुखी नजर आते देखकर प्राप की अनुमोदना करना नहीं. धर्म का फल भवांतर में सुख ही है. पाप का फल भवांतर में भी दुःख ही है। ... झूठ बोलने से ज्ञानावरणीय आदि घाती कर्म को तदुपरान्त अशाता, अशुभ नाम कर्म, नीच गोत्र वगैरा दुष्ट कर्म बंधाते है, अन्य भव में पंचेंद्रि हो तो भी जीभ के रोगों, मुख का रोग, गुंगा, बोबड़ापना
और अनादेय, दुःस्वर, अपयश, दुर्भाग्य वगैरा विविध दुःखों के वश होना पड़ता है।
जिणपवयणवुड्ढिकरं पभावगं णाणदंसणगुणाणं । .
भक्खतो जिणदव्वं अणंतसंसारीओ होइ ॥ अर्थ-जिन प्रवचन की वृद्धि करे, ज्ञान दर्शन गुण की प्रभावना करे
परन्तु देवद्रव्य का भक्षण करता हुवा अनन्त संसारी होता है ।
सदा याद रक्खो !!! आणासुद्धो धम्मो।
ण हि परिणामसुद्धीए धम्मो ॥
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धर्म की शुद्धि आक्षा के आधार पर ही होती है, मात्र .परिणामों की शुद्धि से धर्म नहीं होता है।
____ आशा याने वीतराग प्रभु की मर्यादाओं 0 को निभाने की तत्परता।