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ખામમાત
हैकुमार ! पहले यहां श्री ऋषभदेव भगवान का चतुईख मन्दिर महा प्रभावशाली था। यहां सर्व दिशा से आये हुवे संघ ने भण्डार में खूब धन दिया, संघ के जाने के बाद यहां के लोग इकट्ठे होकर सब मन को बांट लिया और अविधि से अपना घर वगैरा के काम में लगाया सारे नगर को चेपी रोग माफिक अपवित्र बनाया उसी ग्रह नगर शोभा रहित निर्धन दुर्भाग्य आजीविका की दुर्लभता- निःशुकता कादि दोषों से दूषित हुआ है आपने जो अनुमान किया है वह संशय रहीत ही है। ... यह सुनकर कुमार को दया आने से चन्द्रकुमार वहां से बाजार में आकर वृद्धों से सब हकीकत कह सुनाई और कहा कि यह मन्दिर भी जीर्ण हो गया है और आपको पाप भी बहुत लगा है, देना सर्व प्रकार का खराब है उसमें भी देवद्रव्य का देना तो अत्यन्त बुरा है, शास्त्रों में कहा है कि " हे गौतम ! देवद्रव्य का भक्षण करने वाला सात वक्त सातमी नरक में जाता है" (देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारण द्रव्य, गुरुद्रव्य . विषय में भी समझना ) निर्धनपणा वगैरा करने वाले देवऋण से मुक्त होना जरूरी है । इसके लिये उत्साह पूर्वक इस ऋण से अलग होने का उपाय करो । ऐसा चन्द्रकुमार का कथन सुनकर कितनेक देवऋण से उरने वाले लोगो ने जो लिया था उससे अधिक दे दिया, बाकी के बचे हुए धन से भाजीविका चलाकर सुखी बने । इस लोक में परलोक में सुखी हुवे जिन्होंने नहीं दिया वे जन्म जन्म में दुःखी ही रहे, चन्द्रकुमार ने उस गाम में पानी भी नहीं पिया, दूसरे गाम जाकर भोजन पान किया । स्त्री सहित अपने नगर में जाकर राज्य करके अन्त में दीक्षा लेकर तोक्ष को प्राप्त किया-जैसे देवद्रव्य वैसे ही ज्ञान गुरु साधारण भी समझना साधारण द्रव्य किसी श्रावक को देने की आवश्यकता लगे तो दो जनों की राय कर देना।