________________
समर्पण
जिनके अदम्य साहस एवं श्रुतभक्ति ने जिनागम-ग्रन्थमाला को जन्म दिया, जिन्होंने अपने जीवन काल में अनेकानेक ग्रन्थों का प्रणयन कर मानव-लोक का असीम उपकार किया, उच्च आचार और शुचि विचार जिनका सहज योग बन गया था, जिनका वैदुष्य विद्वद्वर्ग में था, जो शत-शत सन्तों सतियों द्वारा श्रमणसंघ के भावी कर्णधार के रूप में प्रतिष्ठित किए गए थे,
जो मनसा वाचा - कर्मणा सम्यक् संकल्प, सम्भाषण और समाधि के साकार प्रतीक थे, उन सर्वतोभद्र महामनीषी
श्रमण संघीय युवाचार्य
-
श्री मिश्रीलालजी महाराज 'मधुकर'
की दिवंगत पुनीतात्मा को ।
[ प्रथम संस्करण से ]