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Praslesalesslesterolesalesale slesaleslesslesslesale.slesslesslessleslesale salese.sleslessonslesslesleeplesslesslesleeplesslee sleeplesslesslesslesslesslesoles slowlesslee
gholesalcalese ale slesalelocalhealhe slashe she salesalesalesale slesaleshe sleshaskadaste syste sade salesalesdesiseksiskesisekeselessleelesslege क्रांतद्रष्टा गुरुदेव का अशीष-दर्शन
बत्तीस आगम अध्यात्म के अमृत-कलश हैं। अतीत में असंख्य भव्य जीवों ने इस अमृत के पान से अमरत्व की प्राप्ति की है। वर्तमान में भी अनेक साधक इस अमृत का पान कर अमरत्व के पथ पर यात्रशील हैं।
मेरे गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द जी महाराज के चिन्तन में कई दशक पूर्व यह विचार उत्पन्न हुआ कि अध्यात्म के ये अमृतकलश जन साधारण की भाषा में सर्वसुलभ हों। तब गुरुदेव ने मुझसे कहा था-अमर! कुछ ऐसा करो जिससे यह आगम ज्ञान केवल विद्वानों के उपभोग का विषय न रहे बल्कि साधारण पाठक और यहाँ तक कि छोटी आयु के बाल पाठक भी आगमों को उसी रुचि से पढ़ें जिस रुचि से विद्वान पढ़ते हैं। गुरुदेव ने ही आगमों की स्वाध्याय रुचि बढ़ाने के लिए सचित्र आगम प्रकाशन का विचार दिया था। गुरुदेव के निर्देशन में जब यह कार्य प्रारम्भ हुआ तो आगम की भाव-भाषा और सुन्दर चित्रांकित प्रस्तुति देखकर गुरुदेव ने कहा-अमर! यह कार्य अनूठा है। मैं चाहता हूँ कि यह अनूठा कार्य
और अनूठा बने, बृहद् बने, सर्वगम्य बने। इसके लिए आवश्यक है कि इसके सरल हिन्दी अनुवाद के समान ही सरल इंग्लिश अनुवाद का भी प्रबंध किया जाये। गुरुदेव के इस विचार ने जहाँ मुझे आह्लादित किया वहीं चिंतित भी किया। क्योंकि आंग्ल भाषा-ज्ञान की मेरी अपनी सीमाएं हैं। मैंने गुरुदेव के समक्ष अपनी चिंताएं रखीं। गुरुदेव ने कहा-जगन्नाथ का रथ किसी एक हाथ से नहीं खींचा जाता, उसके लिए अनेक हाथों के सहयोग की अपेक्षा होती है। जितना तुम कर सकते हो उतना तुम स्वयं करो! जो तुम नहीं कर सकते हो उसके लिए आंग्ल विद्वानों का सहयोग लो।
गुरुदेव का आशीष-दर्शन मेरे साहस का संबल बना। उसके लिए कुछ आंग्ल भाषा के विद्वानों से संपर्क किया गया। सहयोगी जुड़ते चले गये। सरल हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद के साथ हृदय स्पर्शी और अर्थ स्पर्शी चित्रों की प्रस्तुति के साथ आगम शृंखला आकार लेने लगी। मण्डनमिश्रीय साहित्य तल्लीनता के इन दो दशकों में तेईस आगम प्रकाश में आ चुके हैं। क्रान्तद्रष्टा श्रद्धेय गुरुदेव का स्वप्न साकार होने के करीब है। उसी क्रम में प्रस्तुत श्री आवश्यक सूत्र का प्रकाशन हो रहा है। इन प्रकाशनों की बहु उपयोगिता, लोकप्रियता से पाठक स्वयं परिचित हैं ही। कई आगमों के तो कई-कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी
आदि कई पाश्चात्य देशों में ये आगम पढ़े और पढ़ाए जाते हैं। जैन दर्शन का तात्विक विवेचन पढ़कर पश्चिमी जगत न केवल हैरान है बल्कि जिनत्व के प्रति उसकी आस्था में भी भारी
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