Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 17
________________ सूर्यशप्तिप्रकाशिका टीका सू० १ प्रास्ताविककथनम् भद्दे नाम चेइए होत्था वण्णओ' अत्र खलु मणिभद्रनामकं चैत्यमासीत् वर्णकः । चितेलेप्यादि चयनस्य भावः कर्म वा चैत्यम् तस्य सज्ञाशब्दत्वाद् उद्यानविशेष तत्रस्थितज्ञानशालाविशेषे वा प्रसिद्धिः ततस्तदाश्रयभूतं यद् ज्ञानगृहं तदपि उपचाराच्चैत्यम् । तच्चेह व्यन्तरायतनमासीत्, तस्यापि चैत्यस्य वर्णको वक्तव्यः स चौपपातिकसूत्रादेव अवसेयः। 'तीसे णं मिहिलाए जितसत्तू राया धारिणीदेवी वण्णओ' त्ति' तस्याः खलु मिथिलाया नगर्याः जितशत्रुर्नाम राजा आसीत् धारिणी देवी तन्नाम्नी राज्ञी चासीत् । रूपयौवनसम्पन्ना विशाल कुलसम्भवा देवीपदभागिनी समस्तान्तःपुरप्रधाना सकलगुणधारणाद्धारिणी इत्यन्वर्थसंज्ञका पहराज्ञी आसीदित्यर्थः । 'वण्णओ' तस्य राज्ञ स्तस्या देव्याश्च वर्णनमोपपातिकसूत्रादेव विज्ञेयम् ‘तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये के (बहिया उत्तरपुरथिमे दिसीभाए) बाहर उत्तरपूर्व के दिग भाग में अर्थात् ईशान कोण में (एत्थ णं मणिभद्दे नामं चेइए होत्था वण्णओ) यहां पर मणिभद्र नाम का एक चैत्य था, उसका वर्णन-चित का जो भाव या कर्म वह चैत्य उसकी संज्ञा शब्द से उद्यान विशेष या वहां पर की ज्ञानशाला विशेष में उसकी प्रसिद्धि थी अतः उसका आश्रयभूत जो ज्ञान गृह वह भी उपचार से चैत्य कहा जाता है, ऐसा यहां पर व्यंतरायतन था उस चैत्य का वर्णन औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार समझ लेवें. (तीसे णं मिहिलाए जियसत्तू राया धारिणी देवी वण्णओ त्ति) उस मिथिला नगरी का जितशत्रु नाम का राजा था एवं धारिणी नाम की रानी थी। वह राणी रूप यौवनवती थी। तथाच उत्तमकुलोत्पन्ना थी। देवी पद के योग्य समग्र अन्तःपुर में मुख्य थी। समग्र गुणों को धारण करने से धारिणी इस योग्य नाम वाली पट्टरानी थी। (वण्णओ) उस जितशत्रु राजा एवं परस्थिमे दिसीभाए) ५.२ उत्तरपूर्व हिमामा पर्थात् शान मुभा (एत्थणं मणिभद्दे नाम चेइए होत्था वण्णओ) - स्थणे मणिभद्र नामनु चैत्य तु तेनु १ न यित्तनारे ભાવ અથવા કમ તે ચિત્ય તેની સંજ્ઞાશબ્દથી ઉદ્યાન વિશેષ અથવા ત્યાંની જ્ઞાનશાળા વિશેષમાં તેની પ્રસિદ્ધિ હતી. તેથી તેના આશ્રયભૂત જે જ્ઞાનગૃહ તે પણ ઉપચારથી ચૈત્ય કહેવાય છે. એ રીતનું અહીંયાં એક વ્યન્તરાયતન હતું તે ચિત્યનું વર્ણન ઔપપાતિક સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવું. (तीसेणं मिहिलाए जियसत्तू राया धारिणीदेवी वण्णओत्ति) २ मिथिलानगरीमा शत्रु નામનો રાજા હતા અને તેની રાણીનું નામ ધારિણી હતી. તે રાણી રૂપ અને યૌવનથી યુક્ત હતી, અને તે ઉત્તમ કુળમાં જન્મેલી હતી. દેવી પદને યોગ્ય બધી જ અંતઃપુરની રાણિયોમાં તે મુખ્ય હતી, તે બધા જ ગુણોને ધારણ કરવાવાળી હોવાથી ધારિણીએ म-पथ नामवाणी ती. (वण्णओ) मे शत्रु०॥ मने धारिणी राणीनु न मौ५ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧

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