Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ सूर्यज्ञप्तिप्रकाशिका टीका सू० १ प्रास्ताविक कथनम् उपदिष्टवान्, तथोपदर्शयितुमिच्छुः प्रथमतोनगरीसमृद्धयुद्यानाभिधानपुरस्सरं सकलवक्तव्यतां वक्तुकाम आह- 'तेणं कालेणं तेणं समरणं' इत्यादि । तस्मिन् काले तस्मिन् समये, कोऽसौकाल इति जिज्ञासायामाह - यदा भगवान् विहरतिस्म तस्मिन्काले - अधिकृतावसर्पिणी चतुथरकरूपे 'अत्र सप्तम्यर्थे तृतीया' तस्मिन् समये- जिनशत्रौ राज्ञि शासति सति. अत्र समयशब्दोऽवसरवाची तस्मिन् समये 'मिहिला नाम नयरी होत्था' मिथिला नामनगरीआसीत् । सम्प्रति अस्या नगर्या वर्णनम् औपपातिकसूत्रोक्त चम्पानगरीवर्णनवत् सामान्यरूपेणाह'रिद्धत्थिमियसमिद्धा' ऋद्धस्तिमितसमृद्धा प्रमुदितजनजानपदा प्रासादीया वर्णकः । तत्र ऋद्धा-धन-धान्यैः रत्नप्रचयैः पश्वादिभिः पौरजनैर्भवनैश्वातीवसमृद्धि मुपगता, स्तिमितास्वचक्रपरचक्रतस्तरडमरादिसमुत्थभयरहिता समृद्धा - समस्त विभूतियुक्ता । अत्र पदत्रये उसको प्रकट करने की इच्छा से प्रथम उस नगरी की समृद्धि उद्यान के नामाभिधान पुरःसर सम्पूर्ण वक्तव्यार्थ प्रगट करने की इच्छा से कहते हैं - (तेणं काले तेणं समएणं) इत्यादि उसकाल में एवं उस समय में वह कौन सा काल इस जिज्ञासा की निवृत्ति के लिये कहते हैं- जिसकाल में भगवान् महावीर स्वामी विहार कर रहे थे उस काल में इस अवसर्पिणी के चौधाआरा रूप काल में यहां पर सप्तमी के अर्थ में तृतीया हुई हैं । उस समय में - अर्थात् जितशत्रु राजाके शासन कालके ( यहां पर समय शब्द अवसर बोधक है ) समय में (मिहिला नाम नगरी होत्था) मिथिलानाम की नगरी थी इस नगरी का वर्णन औपपातिक सूत्र में कही हुई चंपानगरी के वर्णनानुसार सामान्यरूप से कहते हैं (रिद्वत्थिमियसमिद्धा ) ऋद्धस्तिमित समृद्ध अर्थात् ऋद्ध याने धन धान्य रत्न समूह पशु आदि से एवं पौरवासीजन समूह से एवं उनके निवासार्थ विविध प्रकार के भवनादि से अत्यंत समृद्धि शालि स्तिमित याने स्वचक्र परचक्र के तस्कर डमरादि के भय रहित समृद्ध ઈચ્છાથી પહેલાં એ નગરીની સમૃદ્ધિ ઉદ્યાનના નામાભિધાન સાથે સમ્પૂર્ણ કથન પ્રગટ २खानी छाथी उडे छे - ( तेणं कालेणं तेणं समएणं) इत्यादि. તે કાળમાં અને તે સમયમાં તે કયે। કાળ ? એ જીજ્ઞાસાની નિવૃત્તિ માટે કહે છે જે કાળમાં ભગવાન મહાવીરસ્વામી વિહાર કરતા હતા તે કાળમાં અહીંયાં સપ્તમીના અમાં તૃતીયા વિભક્તિ થયેલ છે, એ સમયમાં અર્થાત્ જીતશત્રુ રાજાના શાસનકાળરૂપમાં અહીંયાં સમય શબ્દ અવસર વાચક છે. આ નગરીનુ વન ઔપપાતિક સૂત્રમાં કહેવામાં આવેલ संपानगरीना वन प्रमाणे सामान्य रीते डे छे - (रिद्धत्थिमिय समिद्धा ) ऋद्धस्तिमित સમૃદ્ધ અર્થાત્ ઋદ્ધ અર્થાત્ ધનધાન્ય રત્ન સમૂહ તથા પશુ વિગેરેથી એવ` પૌરવાસી જન સમૂહથી તથા તેઓના નિવાસરૂપ અનેક પ્રકારના ભવનાદિકથી અત્યંત સમૃદ્ધિયુક્ત સ્તિમિત શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૧

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