Book Title: Agam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 16
________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे कर्मधारयो बोध्यः ॥ ‘पमुइयजणजाणवया' प्रमुदितजनजानपदा, तत्र प्रमुदिताः-आनन्दपूर्णाः, प्रमोदजनकवस्तुसद्भावात् प्रमोदवन्त इत्यर्थः जनाः-नागरिका लोकाः, जानपदाःजनपदभवाः अन्येऽपि प्राणिनः, प्रयोजनवशात्तत्रागता जनाश्च यत्र सा प्रमुदितजनजानपदा 'जाव पासाइया'-यावत्प्रासादीया-प्रसन्नतोपपादिका अत्र यावच्छब्देन औपपातिकसूत्रप्रतिपादितः समस्तोऽपि वर्णकः । तथा च दर्शनीया अभिरूपा प्रतिरूपा, तत्र दर्शनीयाधनिनां प्रासादबाहुल्यात् तेषां दर्शनेन नेत्र सुखकरा, अभिरूपा-अभिमुखम्-अतिसुन्दरं रूपम् आकारो यस्याः सा अभिरूपा, प्रति-विशिष्टं रूपं यस्याः सा प्रतिरूपा, सौन्दर्यपरिपूर्णा इति यावत् । 'तीसेणं मिहिलाए नयरीए' तस्यां खलु मिथिलायां नगर्याम् 'बाहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए' बहिरूत्तरपूर्वस्यां दिशिभागे ईशानकोणे इत्यर्थः 'एत्थ णं मणियाने समग्र वैभवयुक्त यहां तीनों पद में कर्मधारय समास समझलेवे (पमुइयजणजाणवया) प्रमुदितजन जानपद अर्थात् प्रमुदित माने आनन्दपूर्ण आनन्द जनक वस्तु का सद्भाव होने से प्रमोदवान् नागरिक लोग एवं जानपद देशवासि अन्य सभी प्राणिगणों की प्रयोजनवशात् वहां आये हुवे हों ऐसे (जाव पासाइया) यावत् प्रसन्नताका ही सजिका थी, यहां आगत यावत् शब्द से औपपातिक सूत्र में प्रतिपादित सम्पूर्ण वर्णन ग्रहण करलेवें, __ वह इस प्रकार से-'दर्शनीया अभिरूपा एवं प्रतिस्पा' दर्शनीया धनिकों के विविध प्रकार के महलोंसे दर्शनीय थी उसको देखने से नेत्रको सुखाकारी थी अभिरूपा माने अत्यन्त रूप जिस का है अर्थात् इस नगरी की रचना विशिष्ट प्रकार की थी, अतएव वह प्रतिरूपा विशिष्ट प्रकार की रूपशालिनी थी, अर्थात् सौंदर्य से परिपूर्ण थी, (तीसेणं मिहिलाए नयरीए) उस मिथिलानगरी એટલે કે સ્વચકના ચાર લુટારૂ ડમરાદિ વિગેરેના ભય વિનાની સમૃદ્ધ સંપૂર્ણ વૈભવયુક્ત અહીંયા આ ગણિપદમાં કર્મધારય સમાસ સમજ. (पमुइय जणजाणवया) प्रभुहितानन५६ अर्थात् प्रभुहित मेरो मान १२४ मेटसे કે આનંદજનક વસ્તુઓને સદ્ભાવ હોવાથી અમેદવાળા નગરનિવાસીઓ તથા જાનપદ એટલે દેશમાં નિવાસ કરવાવાળા અન્ય બધા જ પ્રાણિ કે જે પ્રયોજનને લઈને ત્યાં भावना हाय तवा (जाव पासाइया) यावत् प्रसन्नताने उत्पन्न ४२१4॥ ता, मही આવેલ યાવત શબ્દથી ઔપપાતિક સૂત્રમાં પ્રતિપાદન કરેલ બધું જ વર્ણન ગ્રહણ કરી લેવું. तपान मा शत छ-(दर्शनीया अमिरूपा प्रतिरूपा) शनीय अभि३५ मने प्रति३५. ધનવાનોના અનેક પ્રકારના મહેલેથી તે દર્શનીય હતી, તેને જેવાથી નેત્રને સુખકારક હતી, અભિરૂપ એટલે કે જેનું રૂપ અત્યંત સુંદર છે અર્થાત્ આ નગરીની રચના વિશેષ પ્રકારની હતી, તેથી જ તે પ્રતિરૂપ વિશેષ પ્રકારના રૂપથી શોભાયમાન હતી. અર્થાત્ सौथी १२५२ ता. (तीसेणं मिहिलाए नयरीए) मे मिथिला नगरानी (बहिया उत्तर શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૧

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