Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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३] को नष्ट कर दिया, तो किसीने व्यवहार को लेकर निश्चय को, तथा किसीने सावध क्रिया में ही धर्म बताया तो किसीने नास्तिकवादका शरण ले लिया, इत्यादि बातों का वैपरीत्य देखकर समाज को 'भगभान यथार्थ भावों को प्रगट करनेवाली तथा सरल नवीन टीकाकी रचना हो' ऐसी इच्छा जागृत हुई, तदनुसार जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्य श्री घासीलालजी महाराज साहेबने इस भगीरथ कार्य को अपनाया और वि. १९८४ में बीकानेर चातुर्मास के अन्दर शास्त्रोद्धार के कार्य को स्थानकवासी संघ बीकानेर तथा श्रीमान् दानवीर शेठ भेरुदानजी सेठिया के आग्रह से प्रारंभ किया, उस समय से यथावसर यह कार्य धीरे २ चला परन्तु जैसा चाहिये वैसा कार्य सुचारु रूपसे नहीं चला वि. सं. १९९२-९३ का चातुर्मास करांची था, तब वहाँ के संघने श्री उपासकदशाङ्गसूत्र की टीका छपाकर प्रसिद्ध की जिस को दामनगर के शास्त्रज्ञ शेठ दामोदर जगजीवन भाईने पढी, उस समय शेठजी को विचार हुवा कि अपनी स्थानकवासी समाज में इस प्रकार की दीका लिखनेवाले हैं तो क्यों नहीं शास्त्रोद्धारका कार्य सुचारु रूपसे काठियावाड में पूज्य श्री को बुलाकर कराया जाय, इस भावना को पं. मुनि श्री गबुलालजी म. ने अंकुरित की, 'यादृशो भावना तादृशी सिद्धि' के अनुसार राजकोटनिवासी श्री गुलाबचन्द भाई मेहताने शेठजीको प्रोत्साहित करनेके लिए प्रथम ही १० हजार रु. की उदार रकम शास्त्रोद्धार के लिए जाहिर की जिससे शेठजीने पूज्य श्रीको काठियावाड पधारने की विनन्ती मेजी, तदनुसार वि. सं. २००१ में पूज्य श्री दामनगर पधारे। वहाँ से यह कार्य प्रारंभ हुवा जो ठीक तरहसे चल रहा है ।
दामनगर चातुर्मास में काठियावाड स्थानकवासी समाज के नरवीर श्री छबीलदास भाई कोठारी दर्शनार्थ आए और उन्हें शास्त्रोद्धार का कार्य सुचारु रूपसे होना चाहिये ऐसे विचार स्फुरित हुए, जिस से उन्होंने इस कार्य को अपने हाथ लेकर पूर्ण वेगवान बनाया जिस के फल स्वरूप यह श्री अनुत्तरोपपातिक सूत्र की संस्कृत टीका पूज्य श्री के उदार ज्ञानद्वारा हमें प्राप्त हुई ।
શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર