Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 172
________________ १०२ __ श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे छाया-धन्यस्य हस्तयोरिद०, तद् यथा०-शुष्कछगणिकेति वा, वटपत्रमिति वा, पलासपत्रमिति वा, एवमेव० ॥सू० २७॥ टीका-'धण्णस्स' इत्यादि। तस्य हस्तयोरेवं रूपलावण्यं तपश्चरणेन संजातं, यथा शुष्कछगणिका-शुष्कगोमयं 'छाणा' 'कंडा' इति प्रसिद्धम् , यथा वा वटपत्रम्-वटवृक्षम्य शुष्कं पत्रम् , यथा वा पलाशपत्रम्-पलाशक्षस्य शुष्कं पत्रम् , एवमेव तस्य हस्तौ मांसशोणितयोः शुष्कतया संजातौ ॥सू०२७॥ मूलम् धण्णस्स हत्थंगुलियाणं अय से जहा.-कलायसंगिलाइ वा, मुग्गसंगलियाइ वा, माससंगलियाइ वा तरुणिया छिण्णा आयवे दिण्णा सुक्का समाणी एवमेव ॥ सू० २८॥ छाया-धन्यस्य हस्ताङ्गलिकानामिद०, तद्यथा०-कलासंगलिकेति वा, मुद्गसंगलिकेति वा, माषसंगलिकेति वा तरुणिका छिन्ना आतपे दत्ता शुष्का सती०, एवमेव० ॥ मू० २८ ॥ टीका-'धण्णस्स' इत्यादि । तस्य हस्ताङ्गलिकानां रूपलावण्यं तपश्चरणेन तथाविधं संजातं यथा कलायसंगलिका, कलायोवृत्तचणकः, तस्य संगलिका-फलिका,मुद्गसंगलिका-मुद्गलिका, माषसंगलिकामाषफलिका तरुणिका 'धण्णस्स' इत्यादि । जिस प्रकार गोबर का सूखा हुआ छाणा (कंडा), वट-वृक्ष का सूखा हुआ पत्ता अथवा पलाश (खाखरा, ढाक) वृक्ष का सूखा हुआ पत्ता होता है, उसी प्रकार धन्यकुमार अनगार के दोनो हाथ अतिशय घोर तप के कारण मांस एवं शोणित से विहीन होकर शुष्क, रूक्ष हो गये थे ।। सू० २७ ॥ _ 'धण्णस्स' इत्यादि । जिस प्रकार मटरकी फलियां, मूंग की फलियां, उड़द की फलियां, अपरिपक्व अवस्था में ही तोडकर धूप में सूखा देने से म्लान एवं शुष्क हो जाती हैं, उसी प्रकार धन्य 'धण्णस्स' त्याहि. भ. सुध गये छ, 43नां सुxi visi, मथवा પલાસ [ખાખરા - ઢાક] વૃક્ષના સુકાઈ ગયેલ પાંદડા હોય છે, તેવી જ રીતે ધન્યકુમાર અનગારના બન્ને હાથ અતિશય ઉગ્રતાપના કારણે માંસ અને લેહીના અભાવે શુષ્ક रूक्ष 45 गया al. (सू० २७) 'धण्णस्सत्याहि वी शत वयानी शशी. भगनी शगो, भने અડદની શીગે, અધી પાકેલ અવસ્થામાં તેડીને તડકામાં સુકવવાથી પ્લાન અને શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર

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