Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 174
________________ श्री अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रे टीका-'धण्णस्स' इत्यादि । तस्य धन्यनामानगारस्य हुनुकंचिबुकं तपोमाहात्म्यादेवं विधं संजातं यथा-अलाबुफलं-सद्योजाततुम्बीफलं, हकुवफलं'हिंगोटा' इति भाषापसिद्धफलं, आम्राष्टिका-आम्रगुटिका 'आमगुठली' इति भाषायाम् , तद्वत् शुष्कं रूक्षं निर्मासं चिबुकमभवत् ॥ सू० ३०॥ मूलम्-धण्णस्स उढाणं०, से जहा०--सुक्कजलोयाइ वा, सिलेसगुलियाइ वा, अलत्तगुलियाइ वा, एवामेव० ॥ सू०३१॥ छाया-धन्यस्यौष्ठयोः, तद्यथा०-शुष्कजलौकेति वा, श्लेषगुटिकेति वा, अलक्तकगुटिकेति वा, एवमेव० ॥ सू० ३१ ॥ टीका-'धण्णस्स' इत्यादि । तस्योष्ठयोस्तपःप्रभावादेवं रूपलावण्यं संजातं, यथा--शुष्कजलौका 'जोंक' इति भाषायाम् , श्लेषगुटिका श्लेषः= लेपविशेषस्तस्य गुटिका, अलक्तकगुटिका, अलक्तक लाक्षारसस्तस्य गुटिका, जलौकादीनां शुष्कत्वे सति कान्तिराहित्यं कार्य च भवति तद्वदुभावोष्ठौ शुष्कौ पक्षौ निर्मासौ बभूवतुः ॥ सू० ३१॥ _ 'धण्णस्स' इत्यादि । तत्काल का उत्पन्न हुआ तुम्बी का फल, हकुब (हिंगोटे) का फल अथवा आम की गुठली जिस प्रकार की होती है, उसी प्रकार धन्यकुमार अनगार की दाढी - ठुड्डी भी अत्यन्त घोर तप के कारण रक्त एवं मांस के अभाव से शुष्क एवं रूक्ष हो गई थीं ॥ सू० ३०॥ 'धण्णस्स' इत्यादि । जिस प्रकार सूखी हुई जोंक, श्लेष (एक प्रकार का लेप ) की गोली अथवा लाख की गोली होती है उसी प्रकार अत्यन्त घोर तप के कारण धन्यकुमार अनगार के दोनों ओठ (होठ) शुष्क, रूक्ष एवं निमास हो गये थे ॥ सू० ३१ ॥ "धण्णस्स' त्याह. तरतर्नु उत्पन्न ये तुमडीनु ३, ४५ (हिंगोटी)नुं ફળ અથવા કેરીની ગોટલી જેવા પ્રકારની હોય છે, તેવી જ રીતે ધન્યકુમાર અણગારની ડાઢી પણ અત્યન્ત ઘેર તપના કારણે રકત અને માંસના અભાવથી શુષ્ક અને રૂક્ષ ती . (सू० ३०)। धण्णस्स' त्याहि वी शते सुय गयेणा , (मे तना खेप) ની ગોળી, અથવા લાખની ગોળી હોય છે, તેવી રીતે અત્યંત ઘેરતપના કારણે ધન્યકુમાર અણુગારના બન્ને હોઠ શુષ્ક, રૂક્ષ અને નિર્માસ થઈ ગયા હતા. (સૂ૦ ૩૧) थ શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર

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