Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 199
________________ १२९ अर्थवोधिनी टीका वर्ग ३ धन्यनामाअणगारशरीरवर्णनम् अजनि विपुलशीर्ष, शुष्कतुम्बीसमानं, मृदुलरुचिरवाहू, शुष्कसर्पोपमानौ । यदुदरमतिनिम्नं, शुष्कत्योपमेयं, जयति मुनिवरोऽयं, धन्यनामाऽनगारः ॥२॥ रसनमपि च वक्ष, श्रोत्रमेतस्य शुष्कं, वटदलमिव जातं, मांसरक्तैर्विहीनम् । नयनमपि च वीणा, रन्ध्रवत्तारकावत , जयति मुनिवरोऽयं, धन्यनामाऽनगारः ॥३॥ तपसि निहितचित्तः, शुष्करूक्षोऽपि जातः, शिथिलितसकलागः, कम्पमानोत्तमाङ्गः । तदपि वरतपस्या,-तेजसा दीप्यमाना, जयति मुनिवरोऽयं, धन्यनामानगारः ॥४॥ कपाल जिन का शुष्क तुम्बी के सरीखा हो गया कोमल रुचिर भुज शुष्क सर्प समान है तपसे नया ॥ जिन का उदर अति निम्न सूखा चर्म सा, अति शिथिल हो अनगार मुनिवर धन्य नामा की सदा जय अचल हो ॥२॥ सूखी हुई रसना तथा सूखा श्रवण अति छीन है। वट-वृक्ष के पत्ते सरीखा मांस - शोणित हीन है ॥ आंख वीणा छेद-तारा तुल्य भासित विमल हो अनगार मुनिवर धन्य-नामा की सदा जय अचल हो ॥३॥ तप में रखे हैं चित्त सूखा रूक्ष विग्रह भासता सब अङ्ग ढीले हो गये शिरभी तथा है कापता ॥ तो भी कठिन तप-तेज से हैं शोभते अति विमल हो अनगार मुनिवर धन्य नामा की सदा जय अचल हो ॥४॥ શીર્ષ જેનું શુષ્ક તુંબી-સમ થયું તપને લીધે, કમળ સુશોભિત બાહું સૂકા, સર્પ જેવાં છે દીસે, ખાડા પડ્યા છે ઉદર માંહે યમ ભીસ્તી કેરી મશક હે, જય હજે અણગાર એવા ધન્ય મુનિવર તણે. ૨ રસના થઈ સૂકી અમીહીન, કાન પણ બહેરા થયા, શુષ્ક વડના પાન જેવાં માંસ શેણિત હીન થયા, ઊંડાં ગયાં છે નયન જેનાં તારક વીણાના રંધ છે, જય જે અણુગાર એવા ધન્ય મુનિવર તણે. ૩ છે શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર

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