Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
१०] व तुलना आजके शून्य-हृदयी से होना दुष्कर ही नहीं परन्तु असम्भव है । वे धन्यकुमार सुलक्षणी पत्नियों के साथ सुन्दर महल में जीवन के ऐहिक सुखों का अनुभव करते हुए तथा मनोऽनुकूल अनेक रागरागनियों को सुनते हुए सुखमय समय बिता रहे थे। ऐसे समय वहाँ श्री महावीर प्रभु जनपदकी कल्याण भावना से और उस में भी विशेषकर धन्यकुमार को भव समुद्र से पार करने के लिए पधारे ।
___ कल्याणकारी भगवान का पदार्पण सुनकर काकन्दी नगरी से जनसमूह तथा जितशत्र राजा पतित - पावनी वाणी को सुनने के लिए आए । एक ही दिशा में अनेक वृन्दों में हर्ष युक्त विविध बातें करते हुए उन नगरनिवासियों की ध्वनि श्री धन्नाजीने अपने महलों में सुनी और अनुचरोंद्वारा सारा वृतान्त जाना । धन्यकुमारने भगवान महावीर का पदार्पण सुनकर हर्षचित्त हो उसी समय अपने अनुचरों के परिवार से जहां भगवान थे वहां गये और विधिपूर्वक वन्दन कर सर्व परिषद के साथ दत्तचित उपदेश सुनने लगे । महावीर प्रभुने आज के उपदेश से धन्नाजी को वैराग्यवान बनाने के लिये मनुष्य जन्म की तथा मोक्षसाधना स्वरूप- १ मनुष्य जन्म, २ आर्य क्षेत्र, ३ उत्तम कुल, ४ दीर्घ आयुष्य, ५ इन्द्रियों की पूर्णता, ६ शरीर स्वास्थ्य, ७ साधुसमागम, ८ सूत्रश्रवण, ९ सम्यक श्रद्धा, १० धर्म कार्य में पराक्रम, इन दस बोलों की दुर्लभता समझाई संसार की मोह निद्रा से जागृत बनने के लिये पुद्गल-परावर्त का स्वरूप श्री धन्नाजी के पूछने पर श्री महावीर स्वामीने फरमाया ।।
आहारक शरीर को छोडकर औदारिक आदि शरीर की वर्गणाओं के योग्य चौदह रज्जु लोकवर्ती सारे परमाणुओं का समस्त रूपसे सम्मिलन ही पुद्गल-परावर्त है । वह जितने काल से होता हो वह काल भी पुद्गल-परावर्त कहलाता है, इसका परिणाम अनन्त उत्सर्पिणिया और अवसर्पिणिया है ।
यह पुद्गल - परावर्तन सात प्रकार का है, और द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव के भेदसे अट्ठाईस तथा सूक्ष्म वादर के भेदसे इस के ५६ भेद होते हैं।
શ્રી અનુત્તરોપપાતિક સૂત્ર