Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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को छोड़कर दीक्षा ग्रहण करता है। पर जनपदकल्याणी नन्दा का उसे सतत स्मरण आता रहता है जिससे वह मन ही मन व्यथित होता है। तथागत बुद्ध ने उसके हृदय की बात जान ली और उसे प्रतिबुद्ध करने के लिए वे उसे अपने साथ में लेते हैं । चलते हुए मार्ग में एक बन्दरिया को दिखाते हैं, जिसकी कान, नाक और पूंछ कटी हुई थी, जिसके बाल जल कर नष्ट हो गये थे। चमड़ी भी फट चुकी थी। उसमें से रक्त चू रहा था। दिखने में बड़ी बीभत्स थी। बुद्ध ने नन्द से पूछा-नन्द, क्या तुम्हारी पत्नी इस बन्दरिया से अधिक सुन्दर है ? उसने कहा-भगवन् ! वह तो अत्यन्त सुन्दर है।
बुद्ध उसे अपने साथ त्रायस्त्रिंश स्वर्ग में ले गये। बुद्ध को देखकर अप्सराओं ने नमस्कार किया। अप्सराओं की ओर संकेत कर बुद्ध ने नन्द से पूछा-क्या तुम्हारी पत्नी जनपदकल्याणी नंदा इनसे भी अधिक सुन्दर है ? 'नहीं भगवन् इन अप्सराओं के दिव्य रूप के सामने जनपदकल्याणी नन्दा का रूप तो उस लुंज-पुंज बंदरी के समान प्रतीत होता है।' तथागत ने मुस्कराते हुए कहा-तो फिर नन्द, क्यों विक्षुब्ध हो रहे हो? भिक्षुधर्म का पालन करो। यदि तुमने अच्छी तरह से भिक्षुधर्म का पालन किया तो इनसे भी अधिक सुन्दर अप्सराएँ तुम्हें प्राप्त होंगी। वह दत्तचित्त होकर भिक्षुधर्म का पालन करने लगा। पर उसके मन में नन्दा बसी हुई थी। उसका वैषयिक लक्ष्य मिटा नहीं था। एक बार सारीपुत्र आदि अस्सी भिक्षुओं ने उपहास करते हुए कहा'तो अप्सराओं के लिए श्रमणधर्म का आराधन कर रहा है।' यह सुनकर वह बहुत ही लज्जित हुआ। उसके पश्चात् विषयाभिलाषा से वह मुक्त होकर अर्हत् बना।
मेघकमार और नन्द की साधना से विचलित होने के निमित्त अलग-अलग हैं। भगवान महावीर मेघकुमार को पूर्वभव की दारुण वेदना और मानव जीवन का महत्त्व बताकर संयम-साधना में स्थिर करते हैं तो तथागत बुद्ध नन्द को आगामी भव के रंगीन सुख बताकर स्थिर करते हैं। जातक साहित्य से यह भी परिज्ञात होता है कि नंद अपने प्राप्त भवों में हाथी था। दोनों के पूर्वभव में हाथी की घटना भी बहुत कुछ समानता लिए हुए है।
- प्रथम अध्ययन में आये हुए अनेक व्यक्ति ऐतिहासिक हैं । सम्राट् श्रेणिक की जीवनगाथाएँ जैन साहित्य में ही नहीं, बौद्ध साहित्य में भी विस्तार से आई हैं। अभयकुमार, जो श्रेणिक का पुत्र था, प्रबल प्रतिभा का धनी था, जैन और बौद्ध दोनों ही परम्पराएँ उसे अपना अनुयायी मानती है और उसकी प्रतापपूर्ण प्रतिभा की अनेक घटनाएँ जैन साहित्य में उट्टङ्कित हैं।
अनुत्तरोपपातिकसूत्र में अभयकुमार के जैन दीक्षा लेने का उल्लेख है। बौद्धदीक्षा लेने का उल्लेख थेरा अपदान व थेरगाथा की अट्ठकथा में है। मज्झिमनिकाय', संयुक्त निकाय आदि में उसके जीवनप्रसंग हैं।
१. संगामावतार जातक-सं. १८२ (हिन्दी अनुवाद खं. २ पृ. २४८-२५३) २. सुत्तनिपात-पवज्जासुत्त २
(क) बुद्ध चरित सं. ११ श्लो ७२ (ख) विनयपिटक-महावग्गो-पृ. ३५-३८ ३. (i) भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति, आवश्यकचूर्णि, धर्म रत्नप्रकरण आदि।
(ii) थेरीगाथा अट्ठकथा ३१-३२, मज्झिमनिकाय-अभयराजकुमार सुत्त, धम्मपद अट्ठकथा आदि ४. त्रिषष्ठिशलाका पुरुषचरित १०-११ ५. अनुत्तरौपपातिक १-१०
६. खुद्दकनिकाय खण्ड ७ नालंदा, भिक्षुजगदीश कश्यप ७. मज्झिमनिकाय ७६
८. संयुक्तनिकाय
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