Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयपन्द्रिका टी० श० ५ ० १ ० १ सूर्यस्वरूपनिरूपणम् ७ न्तरालम्-अग्निकोणम् आगच्छतः, क्रमेणैवास्तंगच्छतः ? ' पाईण दाहिणमुग्गच्छ' प्राचीन-दक्षिणम् अग्निकोणम् उद्गत्य वा ' दाहिणपडीणमागच्छंति ' दक्षिणप्रतीचीनम् दिगन्तरम् नैऋत्यकोणम् आगच्छतः ? अथवा ' दाहिणपहीणमुग्गच्छ ' दक्षिण-प्रतीचीनम् नैऋत्यकोणम् उद्गत्य ‘पडीणमुदीणमागच्छंति ' प्रतीचीनउदीचीनं दिगन्तरं वायव्यकोणम् आगच्छतः क्रमेणैवास्तं प्राप्नुतः ? अथवा 'पडीण -उदीणमुग्गच्छ' प्रतीचीन-उदीचीनं दिगन्तरम् वायव्यकोणमिति यावत् उद्गत्य 'उदीचि-पाइण मागच्छंति ' उदीचीनप्राचीनम् दिगन्तरालम् , ईशानकोणम् आगच्छतः ? अस्तं प्राप्नुतः किम् ? भगवान् तत्स्वीकुर्वन् आह-'हंता गोयमा!' इत्यादि । हे गौतम ! हन्त, सत्यं त्वत्कथनम् , यत् 'जंबूद्दीवेणं दीवे' जम्बूद्वीपे क्षिणदिशा के अन्तरालरूप क्षेत्र में अग्निकोण में क्रम से अस्त होते हैं क्या अथवा (पाईण दाहिणमुग्गच्छ) प्राचीन,दक्षिण के अन्तरालरूप क्षेत्र अग्निकोण में उदित होकर (दाहिणपडीणमागच्छंति ) दक्षिणदिशा और प्रतिचीनदिशा (पश्चिम) के अन्तरालरूप क्षेत्र नैऋत्यकोण में अस्त होते हैं क्या ? अथवा ( दाहिणपडीगमुगच्छ ) नैऋत्यकोण में उदित होकर (पडीणमुदीणमागच्छंति ) वायव्यकोण में क्रम से अस्त होते हैं क्या ? अथवा ( पडीण, उदीणमुग्गच्छ ) प्रतीचीन उदीचीन दिशाके अन्तराल. रूप क्षेत्र वायव्यकोने में उदित होकर ( उदीचि पोहणमागच्छंति ) उ. दीचीन प्राचीन दिशाओं के अन्तरालरूप क्षेत्र ईशान कोने में क्रम से अस्त होते हैं क्या ? इन प्रश्नों का स्वीकारात्मक उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि 'हंता गोयमा ! ' हा, गौतम ! जैसा तुमने प्रश्न क्रिया है वह वैसा ही है अर्थात सत्य है- जम्बूद्वीप में दो दाहिणमागच्छंति " AGrभi ( पूर्व मने दक्षिण १२येना भूमा) . मस्त पामे छ ? २३२“ पाईण-दाहिणमुग्गच्छ ” शुं मनोभा य पाभीन " दाहिण पडीणमागच्छंति" नैऋत्य मा (हक्षिणे अने पश्चिम १. येना मामा ) मत पाने ? अथवा " दाहिण पडीणमुगच्छ' त्य
भi S६५ पाभीने “पडीणमुदीणमागच्छंति ” शु. पायव्य शुभा मस्त पामे छे १ अथवा " पडीण, उदीणमुग्गच्छ "शु वायव्य मामय पामीन " उदीचि पाइणमागच्छति" शानभा सस्त पामे छ ?
सा प्रश्नाने। छारमा १५ मापता भावी२ प्रभु ४३ छ -" हंता, गोयमा !” ७, गौतम ! मेवु मने छ-भूद्वीपमा मे सूर्या छे. ते ઈશાનકેશુમાં ( પૂર્વ અને ઉત્તર દિશા વચ્ચેના ખૂણામાં ) ઉદય પામીને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૪