Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेeefer टीका श० ५ उ० १ स०१ सूर्य स्वरूपनिरूपणम्
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टीका - शास्त्रकारः सूर्यसम्बन्धिवक्तव्यतामाह-' तेणं कालेणं ' इत्यादि । तस्मिन् काले ' तेणं समयेणं ' तस्मिन् समये खलु 'चंपा णामं नयरी चम्पा नाम नगरी ' होस्था' आसीत 'वण्णओ' वर्णकः चम्पावर्णनाप्रतिपादक औपपातिकसूत्रोक्तपदसमुदायो विज्ञेयः 'तीसे णं ' तस्याः खलु 'चंपाए ' चम्पायाम् ' नयरीए ' नगर्याम् ' पुष्ण भद्दे णामं ' पूर्णभद्रं नाम 'चेइए 'चैत्यम् व्यन्तरायतनम् ' होत्था ' आसीत्, 'वण्णओ' वर्णकः, तस्य वर्णनं पूर्ववद् बोध्यम्, तत्र ' सामी समोरूड्डे ' स्वामी महावीरः समवसृतः ' जाव - परिसा पडिगया ' यावत्- पर्षत् प्रतिगता । यावत्करणात् प्रभोः धर्मोपदेशं श्रोतुं पर्षद द्वीप में सूर्य उत्तर और पूर्व दिशा के अन्तराल ईशान में उदय होकर यावत् ईशान में अस्त होते हैं ।
टीकार्थ - शास्त्रकार ने इस सूत्र द्वारा सूर्य संबंधी वक्तव्यता का प्रतिपादन किया है । ( तेणं कालेणं तेणं समएणं ) उस काल और उस समय में (चंपा णामं नयरी) चंपा नामकी नगरी (होत्था) थी । (वण्णओ) इसका वर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है । (तीसे णं ) उस ( पाए नयए) चंपा नगरी में (पुण्णभद्दे णामं चेहए ) पूर्णभद्र नाम का चैत्य व्यन्तरायतन (होत्था ) था । ( वण्णओ ) इस व्यन्तरायतन का भी वर्णन औपपातिक सूत्र में किया गया है। (स्वामी समोसड्डे ) महावीर प्रभु का वहां पर समवसरण हुआ ( जाव परिसा पडिगया ) यावत् परिषदा अपने २ स्थान पर वापिस चली गई । ( यावत् ) शब्द से यहां (प्रभोः धर्मोपदेशं श्रोतुं ) प्रभु के धर्मोपदेश को सुनने के लिये
ઉદય અને અસ્ત થતા રહે છે-જમૂદ્રીપ નામના દ્વીપમાં સૂર્ય ઈશાનમા ઉદય પામીને (યાવર્તે) ઈશાનમાં અસ્ત પામે છે
ટીકા સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા સૂર્યની વક્તવ્યતાનું પ્રતિપાદન કર્યું छे ( तेणं काळेणं तेणं समएणं) ते अये अने ते समये, " चंपा णामं नयरी होत्था " ग्रंथा नामे भेङ नगरी हुती. “ वण्ण ओ " तेनुं वर्शन भोपपाति सूत्रमां अर्ध्या प्रमाणे समन्वु " तीसेणं चंपाए " ते यया नगरीभां पुण्णभद्दे णामं चेइए होत्था પૂર્ણ ભદ્ર નામે ચૈત્ય ( બ્યન્તરાયતન) હતુ ( वण्णओ ) ते शैत्यनुं वागुन यशु सोपपाति सूत्रमा यो भुभ्ण समन्वु. २ सामीसमोसड्ढे त्यां भडावीरस्वामीनु सभवसर थथुः " जाव परिसा पडिगया " प्रलुनो धर्मोपदेश सांलजवाने माटे परिवह नीडजी. धभोपदेश सांभणीने परिषद (न समूह ) विजराई गई. ( जाब) पहथी उपरना
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श्री भगवती सूत्र : ४