Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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( ३२ ) निम्नोक्त ३६३ मतान्तरों का उल्लेख किया है। १८० प्रकार के क्रियावादी ८४ प्रकार के अक्रियावादी ६७ प्रकार के अज्ञानवादी और ३२ प्रकार के वैनयिक ।
जैन परम्परागत अनेक महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों की सुस्पष्ट व्याख्या सर्व प्रथम आचार्य भद्रबाहु ने अपनी आगमिक नियुक्तियों में की है । इस दृष्टि से नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु का जैन साहित्य के इतिहास में एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। पीछे भाष्यकारों एवं टीकाकारों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में उपयुक्त नियुक्तियों का आधार लेते हुए ही अपनी कृतियों का निर्माण किया है। भाष्य:
नियुक्तियों का मुख्य प्रयोजन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना रहा है। पारिभाषिक शब्दों में छिपे हुए अर्थ बाहुल्य को अभिव्यक्त करने का सर्वप्रथम श्रेय भाष्यकारों को है। नियुक्तियों की भाँति भाष्य भी पद्य बद्ध प्राकृत में है । कुछ भाष्य नियुक्तियों पर हैं और कुछ केवल मूल सूत्रों पर । निम्नोक्त आगम ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं :१-आवश्यक, २-दशवकालिक, ३-उत्तराध्ययन, ४-वृहत्कल्प, ५-पंचकल्प, ६–व्यवहार ७-निशीथ, ८जीत कल्प, 8-ओघ-नियुक्ति, १०-पिण्ड नियुक्ति । आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य लिखे गये हैं। इनमें से 'विशेष आवश्यक भाष्य' आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन सामायिक पर है। इसमें ३६०३ गाथाएँ हैं । दशवकालिक भाष्य में ६३ गाथाएँ हैं। उत्तराध्ययन भाष्य भी बहुत छोटा है। इसमें ४५ गाथाएँ हैं। बृहत्कल्प पर दो भाष्य हैं। इसमें से लघुभाष्य पर ६४६० गाथाएँ हैं। पंचकल्प-महाभाष्य की गाथा संख्या २५७४ है। व्यवहार भाष्य में ४६२६ गाथाएँ हैं । निशीथ भाष्य में लगभग ६५०० गाथाएँ हैं। जीतकल्प भाष्य में २६०६ गाथाएँ हैं । ओघनियुक्ति पर दो भाष्य हैं। इनमें से लघुभाष्य पर ३२२ तथा वृहद् भाष्य में २५१७ गाथाएँ हैं। पिण्डनियुक्ति भाष्य में केवल ४६ गाथाएं हैं।
इस विशाल प्राकृत भाष्य साहित्य का जैन साहित्य में और विशेषकर आगमिक साहित्य में अति महत्वपूर्ण स्थान है । पद्यबद्ध होने के कारण इसके महत्व में और भी वृद्धि हो जाती है। भाष्यकार:
भाष्यकार के रूप में दो आचार्य प्रसिद्ध हैं :-जिनभद्रगणि और संघदास गणि । विशेषावश्यकभाष्य और जीत कल्पभाष्य आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की कृतियाँ हैं। बृहत्कल्प लघुभाष्य और पंचकल्प महाभाष्य संघदास गणि की रचनाएँ हैं। इन दो भाष्यकारों के अतिरिक्त अन्य किसी आगामिक भाष्यकार के नाम का कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है। इतना निश्चित है कि इन दो भाष्यकारों के अतिरिक्त कम से कम दो भाष्यकार तो और हुए ही हैं। जिनमें से एक व्यवहार भाष्य आदि के प्रणेता एवं दूसरे बृहत्कल्प-बृहद्भाष्य आदि के रचयिता हैं। विद्वानों के अनुमान के अनुसार वृहत्कल्प-वृहद्भाष्य के प्रणेता वृहत्कल्प चूर्णिकार तथा विशेषकल्प-चूर्णिकार से भी पीछे हुए हैं । ये हरिभद्र सूरि के कुछ पूर्ववर्ती अथवा समकालीन हैं। व्यवहार भाष्य के प्रणेता विशेषावश्यक भाष्यकार आचार्य जिनभद्र सूरि के पूर्ववर्ती हैं । संघदासगणि भी आचार्य जिनभद्र के पूर्ववर्ती हैं।
चूर्णियाँ:
जैन आगमों की प्राकृत अथवा संस्कृतमिश्रित प्राकृत व्याख्याएँ चूणियाँ कहलाती हैं । इस प्रकार की कुछ चूणियाँ आगमेतर साहित्य पर भी हैं । जैन आचार्यों ने निम्नोक्त आगमों पर चूणियाँ लिखी हैं।-१-आचारांग, २-सूत्रकृतांग, ३-व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती) ४-जीवाभिगम, ५-निशीथ, ६-महानिशीथ, ७–व्यवहार, ८-दशाश्रु त स्कन्ध, ६-वृहत्कल्प १०-पंचकल्प, ११-ओघनियुक्ति, १२-जीतकल्प, १३-उत्तराध्ययन, १४-आवश्यक१५-दशवकालिक' १६-नन्दी, १७-अनुयोगद्वार, १८-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति । निशीथ और जीतकल्प पर दो-दो