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श्राचारांग में 323 सूत्र हैं, जो नी' अध्ययनों में विभक्त हैं । इन विभिन्न अध्ययनों में जीवन - विकास के सूत्र बिखरे पड़े हैं। यहां मानववाद पूर्णरूप से प्रतिष्ठित है । श्राध्यात्मिक जीवन के लिए प्रेरणाएँ यहां उपलब्ध हैं । मूर्च्छा, प्रमाद, और ममत्व जीवन को दुःखी करने वाले कहे गए हैं । वस्तु-त्याग के स्थान पर ममत्व-त्याग को आचारांग में महत्त्व दिया गया है । वस्तु त्याग, ममत्व-त्याग से प्रतिफलित होना चाहिये । श्राध्यात्मिक जागृति मूल्यवान् कही गई है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य मान-अपमान, लाभ-हानि आदि द्वन्द्वों की निरर्थकता को समझ सकता है । अहिंसा, सत्य और समता के ग्रहण को प्रमुख स्थान दिया गया है । वुद्धि और तर्क जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी होते हुए भी, प्राध्यात्मिक अनुभव इनकी पकड़ से बाहर प्रतिपादित हैं । साधनामय मररण की प्रेरणा सूत्रों में व्याप्त है । आचारांग में भगवान् महावीर की साधना का प्रोजस्वी वर्णन किसी भी साधक के लिए मार्ग-दर्शक हो सकता है । यहां यह ध्यान देने योग्य है कि आचारांग की रचना - शैली और विषय की गम्भीरता को देखते हुए यह कहा गया है कि श्राचारांग उपलब्ध श्रागमों में सबसे प्राचीन है । "आचारांग ग्रागम - साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन है । उसमें वरिणत श्राचार मूलभूत है और वह महावीर युग के अधिक सन्निकट है । "2
श्राचारांग के इन 323 सूत्रों में से ही हमने 129 सूत्रों का चयन 'आचारांग चयनिका' शीर्षक के अन्तर्गत किया है । इस चयन का उद्देश्य पाठकों के समक्ष प्राचारांग के उन कुछ सूत्रों को प्रस्तुत करना है, जो मनुष्यों में अहिंसा, सत्य, समता और जागृति
1. वर्तमान में 8 अध्ययन ही प्राप्त हैं, 7वीं अध्ययन अनुपलब्ध है । 2. जैन आगम - साहित्य : मनन और मीमांसा, पृष्ठ, 60.
चयनिका ]
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