________________
हुए भी मूल्य - जगत् में जीने लगता है। उसका मूल्य-जगत् में जीना धीरे-धीरे गहराई की ओर बढ़ता जाता है। वह अब मानव मूल्यों की खोज में संलग्न हो जाता है। वह मूल्यों के लिए ही जीता है और समाज में उसकी अनुभूति बढ़ े इसके लिए अपना जीवनसमर्पित कर देता है । यह मनुष्य की चेतना का एक दूसरा आयाम है |
आचारांग में मुख्य रूप से मूल्यात्मक चेतना की सबल अभिव्यक्ति हुई है । इसका प्रमुख उद्देश्य अहिंसात्मक समाज का निर्माण करने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करना है, जिससे समाज में समता के आधार पर सुख, शान्ति और समृद्धि के बीज अंकुरित हो सकें । अज्ञान के कारण मनुष्य हिंसात्मक प्रवृत्तियों के द्वारा श्र ेष्ठ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होता है । वह हिंसा के दूरगामी कुप्रभावों को, जो उसके और समाज के जीवन को विकृत करते हैं, नहीं देख पाता है । किसी भी कारण से की गई हिंसा श्राचारांग को मान्य नहीं है । हिंसा के साथ ताल-मेल आचारांग की दृष्टि में हेय है । वह व्यावहारिक जीवन की विवशता हो सकती है, पर वह उपादेय नहीं हो सकती । हिंसा का अर्थ केवल किसी को प्रारण- विहीन करना ही नहीं है, किन्तु किसी भी प्राणी की स्वतन्त्रता का किसी भी रूप में हनन हिंसा के अर्थ में ही सिमट जाता है । इसीलिए आचारांग में कहा है कि किसी भी प्राणी को मत मारो, उस पर शासन मत करो, उसको गुलाम मत बनाओ, उसको मत सताओ और उसे प्रशान्त मत करो । धर्म तो प्राणियों के प्रति समता भाव में ही होता है । मेरा विश्वास है कि हिंसा का इतना सूक्ष्म विवेचन विश्व - साहित्य में कठिनाई से ही मिलेगा । समता की भूमिका पर हिंसा अहिंसा के इतने विश्लेषण एवं विवेचन के कारण ही आचारांग को विश्वसाहित्य में सर्वोपरि स्थान दिया जा सकता है । आचारांग की
1
चयनिका ]
[ iii