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आचारांग सूत्र
में न हुआ हो, उसको जानने के बाद संयमी को उसका प्रायश्चित्त करना चाहिये । चेदवित् ( ज्ञानवान ) मनुष्य इस प्रकार प्रमाद से किये प्रायश्चित्त की प्रशंसा करते हैं। [१]
स्वहित में तत्पर बहुदर्शी, ज्ञानी, उपशांत सम्यक् प्रवृत्ति करने वाला और सदा प्रयत्नशील | ऐसा मुमुक्षु स्त्रियो को देख कर चलायमान न हो। वह अपनी प्रात्मा को समझावे कि लोक में जो स्त्रियां है, वे मेरा क्या भला करने वाली है ? वे मत्र श्राराम के लिये है, पुरुषार्थ के लिये नहीं । [ १६ ]
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मुनि ने कहा है कि कोई संयमी कामवासना से पीडित हो तो उसे रूखा-सूखा श्राहार करना और कम खाना चाहिये; सारे दिन ध्यान में खडे रहना चाहिये; खूब पांच-पांच परिभ्रमण करना चाहिये और अन्त मे थाहार का त्याग करना चाहिये पर स्त्रियों की तरफ मनोवृत्तिको नहीं जाने देना चाहिये । कारण यह कि भोग में पहिले दण्डित होना पड़ता है और पीछे दुःख भोगना पड़ता है या पहिले दुःख भोगना पड़ता है और पीछे दण्डित होना पडता है । इस प्रकार भोग मात्र क्लेश और मोह के कारण है । ऐसा समझ कर संयमी भोगो के प्रति न झुके, ऐसा मैं कहता हूँ । [ ५६ ]
भोगो का त्यागी पुरुष काम कथा न करे, स्त्रियों की और न देखे, उनके साथ एकान्त में न रहे, उन पर ममन्व न रखे, उनको कर्पित करने के लिये अपनी सज-धज न करे, वाणि को संयम में रखे, आत्मा को अंकुश में रखे और हमेशा पाप का त्याग करे । इस प्रकार की साधुता की उपासना करे, ऐसा मे कहता हूँ । [१६] असंयम की खाई में आत्मा को कदापि न गिरने दे । संसार में जहाँ जहाँ विलास है, वहां से इन्द्रियो को हटा कर संयमी