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तेरहवाँ अध्ययन
-(.)पर क्रिया
भिक्षु अपने सम्बन्ध में गृहस्थो द्वारा की हुई निम्न कर्मबन्ध करनेवाती क्रियानों की इच्छा न करे और वे करते हो तो स्वीकार न करे। ( उनका नियमन-प्रतिरोध न करे)
जैसे-कोई गृहस्थ भिक्षु के पैर पोछे, दावे; उनके ऊपर हाय फेरे; उनको रंगे, उनको तेल, घी अन्य पदार्थ से मसले या उन पर चुपड़े, पैरो को लोध्र, कल्क चूर्ण या रंग लगावे; उनको उंडे या गरम पानी से धोये; उन पर किसी वस्तु का लेप करे या धूप दे, पैर में से कील या कांटा निकाल डाले; उनमें से पीप, लोही आदि निकाल कर अच्छा करे, तो वह उसकी इच्छा न करे और न उसको स्वीकार करे ।
इसी प्रकार शरीरके सम्बन्ध में और उसके घाव फोडे, उपांश भगंदर आदि के सम्बन्ध में भी समझे ।
कोई गृहस्थ भिक्षु का पसीना, भैल या आंख कान और नाखून का मैल साफ करे. या कोई उसके बाल, रोम अथवा भौं, बगल या गुह्यप्रदेश के बाल लम्बे देखकर काट डाले, या छोटे करे, तो वह इच्छा न करे और न उसको स्वीकार करे।
कोई गृहस्थ भिक्षु के सिर से जू, लीख बीने; उसको गोद या पलंग में सुलावे, उसके पैर आदि दावे-मसले, हार, अर्धहार,