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सुभाषित
[१४१
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जे पज्जवजायसत्थस्स खेयन्ने से असत्थस्स खेयन्ने जे असत्यस्स खेयन्ने से पज्जवजायसत्थस्सा खेयन्ने । (३: १०९)
जो मनुप्य शब्द आदि काम भोगों से होनेवाली हिंसा को जानने मे कुशल है, वही अहिंसा को जानने में कुशल है; और जो अहिसा को जानने में कुशल है, वही शब्द आदि कामभोगो को होनेवाली हिंसा से जानने में कुशल है ।
संसयं परिजाणओ संसारे परिन्नाए भवइ, संसयं अपरिजाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ (५: १४३)
विपयों के स्वरूप को जो बराबर जानता है, वही संसार को बराबर जानता है, और जो विषयो के स्वरूप को नहीं जानता, वह संसार के स्वरूप को भी नहीं जानता ।
से सुयं च मे अज्झत्थं च में ।
वन्धप्पमोक्खो तुज्झत्थेव ।। (५: १५०) से सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा पुरिसा । परमचक्खू विप्परकम एएसु चेव चम्भचेरं ! ति वेमि ।
मैने सुना है और अनुभव किया है कि बन्धन से छूटना तेरे अपने ही हाथ में है । इमलिये, ज्ञानियो के पाससे ज्ञान प्राप्त करके, हे परमचनु वाले पुरुप ! तू पराक्रम कर, इसी का नाम ब्रह्मचर्य है, ऐसा मैं कहता हूं।
इमेण चैव जुज्झाहि किं ते मुझेण वज्झओ जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । (५: १५३)
हे पुरुप | तू अपने साथ ही युद्ध कर, बाहर युद्ध करने से क्या ? इसके समान युद्ध के योग्य दूसरी वस्तु मिलना दुर्लभ है।।