Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 150
________________ - १४४ ] याचारांग सूट AAAAAAnnanon An And Arr . - e -R aman जो सरल है, मुमुनु है, और अदभी है, वही सच्चा अनगार है । जिस श्रद्धा से मनुष्य गृहत्याग करता है, इसी श्रद्धा को आशंका और आसक्ति को त्याग कर, सदा स्थिर रखना चाहिये । वीर पुरुप इसी मार्ग पर चलते आये हैं। उबहमाणे कुसलेंहिं संवसे, अकंतदुःखी तसथावरा दुही। अलसएं सबसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए ।। सुख दु.ख में समभाव रखकर ज्ञानी पुरुषों की संगति में रहे, और अनेक प्रकार के दुःखो से दुःखी वन न्यावर जीवों को अपनी किसी क्रिया से परिताप न दे। ऐसा करने वाला, पृथ्वी के समान सब कुछ सहन करने वाला महामुनि उत्तम श्रमण कहलाता है । (०१६) विउ नए धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुणिस्स झायो। समाहियस्मग्गिसिहा व तेयसा. तवोय पन्ना य जसो य वड्ढड़ा। उत्तम धर्म-पद का याचरण करने वाला, तृष्णारहित, भ्यान और समाधि से युक्त और अग्नि की ज्वाला के ममान तेजवी विद्वान् भिनु के तप, प्रज्ञा और यश वृद्धि को प्राप्त होते हैं । (अ० १६) तहा विमुक्कस्स परिन्नचारिणी, धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो। विसुज्झई जसि मलं पुरेकडं, ममीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥ इस प्रकार कामभोगो से मुक्त रह कर, विवेक पूर्वक पाचरण करने वाले उस तिमान और सहनशील भिनु के पहिले किये हुए सब पापकर्म अग्नि से चादी का मैल जैसे दूर हो जाता है, वैसे ही दूर हो जाते है (म०१६) इमंमि लोए परए य दोसुवि, न विज्जई वंधण जस्स किंचि वि। से हु निरालंबणमप्पइदिए कलंकलीभावपहं विमुच्चाई।चित्रमि।। ____ इस लोक और परलोक दोनो मे जिसको कोई बन्धन नहीं है, और ओ पदार्थों की आकांक्षा से रहित 'निरालम्ब' और अप्रतिबद्ध है, वही गर्भ में श्राने-आने से मुक्त होता है, ऐया मैं कहता हूं। (अ० १६)

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