Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 133
________________ - - भावनाएं । १२७ - का त्याग (अपश्चिम मारणांतिक मलेग्यना) करके देहत्याग किया । तब चे अच्युतकल्प नामक बारहवें स्वर्ग मे देव हुए । वहा से चे महाविदेह क्षेत्र में जाकर अन्तिम उछास के समय मिन्द, बुद्ध और मुक्त होकर निवार्ण को प्राप्त होगे, और सब दुमो का अन्त करेंगे। [19] भगवान् महावीर ने नीस वर्ष गृहस्थाश्रम में रह कर अपने मात पिता का देहान्त होने पर अपनी प्रतिज्ञा (माता-पिता के देहान्त होने पर प्रव्रज्या लेने कने) पूरी करने का समय जानकर अपना धन-धान्य, सोना-चांदी रत्न श्रादि याचको को दान देकर, हेमन्त ऋतु के पहिले पन में, मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को प्रवज्या लेनेका निश्चय किया भगगन , सूर्योदय के समय से दूसरे दिन तक एक करोड और प्राट नाख सौनया (मुहर) दान देते थे। इस प्रकार पूरे एक वर्ष तक भगवान ने तीन अरब, अठासी करोड़ और अस्सी लाख सोने की मुहरें दान में दो। यह सब धन इन्द्र की श्राज्ञा से वैधमण (कुधेर देव) और उसके देव महावीर को पूरा करते थे। पन्द्रह कर्मभूमि में ही उत्पन्न होने वाले तीर्थंकर को जब दीक्षा लने का समय निकट श्राता है, तब पांचवें कल्प ब्रह्मलोक में काली रेखा के विमानों में रहने वाले लोकातिक देव उनको श्राकर कहते है --'हे भगवान् । मकल जीवों के हित कारक धर्मतीथं की श्राप स्थापना करें 1 ' इसी के अनुसार २६ ये वर्ष उन देवो ने ग्राकर भगवान् से ऐसी प्रार्थना की ।। वार्षिक दान पूरा होने पर, तीसवें वर्ष में भगवान् ने दीक्षा लेने की तैयारी की। उस समय, सब देव-देवी अपनी समस्त

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