Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ श्राचारांग सूत्र - - इस महानत की पांच भावनाएँ ये है पहिली भावना-निर्गन्ध कान से मनोहर शट सुन कर, उसमें श्रामक्ति राग या मोह न करें, इसी प्रकार क्टु शब्द सुनकर हंप न करे क्योंकि ऐसा करने से उसके चित्त की शांति भंग होना श्रीर केवली के उपदेश दिये हुए धर्म से भ्रष्ट होना स्वम्भव है। कान में सुनाते शब्द रोके नहीं जा सकते, पर उनसे नो राग हप है, उसे भिचु त्याग दे। दुसरी भावना-निर्ग्रन्थ पांव से मनोहर रूप देख कर उसमें शाखति न करे, कुरूप को देख कर हेप न करे। श्रास्त्र से दिग्वता रूप रोका नहीं जा सकता, परन्तु उनमें जो रागद्वेप है उसे मितु त्याग दे। ___तीमरी भावना-निर्ग्रन्थ नाक से सुगन्ध सूंघ कर उसमें ग्रामक्ति न करे, दुर्गन्ध सूंघ कर द्वेष न करे । नाक में गंध याती रोकी नहीं जा सकती. परन्तु उसमें जो रागद्वेप है, उसे भिक्षु त्याग दे। चौथी भावना-निर्ग्रन्थ जीभ से सुम्वादु वस्तु चखने पर उनमें शासक्ति न करे, बुरे स्वाद की वस्तु चखने पर तुष न करे। जीभ में स्वाद प्राता रोका नहीं जा सकता परन्तु उसमें जो रागद्वेष है, उसे भिनु त्याग दे। पाचवी भावना-निर्यन्य अच्छे म्पर्श होने पर उसमे आसक्ति न करे, बुरे स्पर्श होने पर हेप न करे । स्वचा से होने वाला स्पर्श रोका नहीं जा सकता, परन्तु उसमें जो रागट्टेप हे उसे भिनु त्याग दे। इतना करने पर ही, कह सकते हैं कि उसने महाव्रत का वरावर पालन किया । इन पाच महायसो और इनकी पच्चीस भावनाओं से युक्त भिक्षु, शास्त्र, प्राचार और मार्ग के अनुसार उनको बराबर पाल कर ज्ञानियो की याज्ञा का पाराधक सच्चा भिन्नु बनता है । [१७६]

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151