Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 142
________________ - - याचाराग मृत्र - मव दिशात्रो में नम कर, महान्, मत्र कर्मी को दूर करने वाले और अन्धकार को दूर कर प्रकाश के ममान नानी तरफ-उपर नीचे और मध्य में प्रकाशित रहने वाले महाव्रतो को सबकी रक्षा करने वाले अनन्त जिननं प्रकट किये है । ___ सब बंधे हुयो (ग्रामक्ति से) में वह भिक्षु अबद्ध होकर विवरे, स्त्रियों में श्रासक्त न हो और सत्कार की अपेक्षा न रखे। इस लोक और परलोक की धागा त्यागने वाला वह पंडित काम भोगों में न फैस। इस प्रकार काम भोगो से मुक्त रह कर, विवेकपूर्वक श्रावण करनेवाले इस शृतिमान और महनशील भिनु के, पहिये किये हुए सब पापकर्म, अग्नि से चांदी का मैल जैसे दूर हो जाता है, वैसे ही दूर हो जाते है, विवेक ज्ञान के अनुसार चलने वाला, श्राकांना रहित और मैथुन से उपरत हुया वह ब्राह्मण, जैसे सांप पुरानी कांचली को छोड़ देता है, वैसे ही दुखशन्या से मुक्त होता है। अपार जलके समूहरूप महासमुद्र के समान जिस संसार को ज्ञानियो ने हाथो से दुन्तर कहा है । इस संसार के स्वरूप को ज्ञानियो के पास से समझ कर, हे पंडित, उसका तू त्याग कर । जो ऐसा करता है, वही मुनि (कर्मों का) 'श्रन्त करने वाला' कहा जाता है । ___इस लोक और परलोक दोनो में जिसको कोई बन्धन नहीं है और जो पदार्थों की प्राकाक्षा से रहित निरालम्ब और अप्रतिबद्ध हैं, वही गर्भ मे आने जाने से मुक्त होता है; ऐमा मैं कहता हूँ । || समाप्त ।।

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