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विमुक्ति
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सोलहवाँ अध्ययन
विमुक्ति
सर्वोत्तम ज्ञानी पुरुषों के इस उपदेश को सुन कर, मनुष्य को सोचना चाहिये कि चारो गति में जीव को अनित्य शरीर ही प्राप्त होता है । ऐसा सोचकर बुद्धिमान मनुष्य घर के बन्धम का त्याग करके दोषयुक्त प्रवृत्तियाँ और ( उनके कारणरूप) श्रासक्ति का निर्भय होकर त्याग करे |
इस प्रकार घरवार की आसक्ति और अनन्त जीवो की हिंसाका त्याग करके, सर्वोत्तम मिताचर्या से विचरने वाले विद्वान् भिक्षु को, मिथ्यादृष्टि मनुष्य, संग्राम में हाथी पर लगने वाले तीरो के समान बुरे वचन कहते हैं, और दूसरे कष्ट देते हैं । इन वचनो और कष्टो को उठाते हुए, वह ज्ञानी, मन को व्यथित किये बिना सब सहन करे और चाहे जैसी आंधी में भी कप रहने वाले पर्वत के
समान डग रहे ।
भिक्षु सुख दुख में समभाव रखकर ज्ञानियो की संगति में रहे, और अनेक प्रकार के दुःखो से दुःखी ऐसे त्रस, स्थावर नीवो को अपनी किसी क्रिया से - परिताप न दे । इस प्रकार करने वाला और पृथ्वी के समान सब कुछ सहन कर लेने वाला महा मुनि श्रमण कहलाता है ।
उत्तम धर्म-पद का श्राचारण करने वाला, तृप्पा रहित, ध्यान और समाधि से युक्त और अभि की ज्वाला के समान तेजस्वी ऐसे विद्वान् भिक्षु के तप, प्रज्ञा और यश वृद्धि को प्राप्त होते हैं ।
* यह अध्ययन चौथी चूडा है 1