Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 134
________________ १२८] याचारांग सूत्र - - - समृद्धि के साथ अपने विमानों में बैठकर कुंडग्राम के उत्तर में क्षत्रियविभाग के ईशान्य में श्रा पहुंचे। हेमन्त ऋतु के पहिले महिने में, प्रथम पक्ष में, मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी को सुव्रत नामक दिन को, विजय महूर्त में, उत्तगफाल्गुनी नक्षत्र में, छाया पूर्व की और पुरुपाकार लम्बी होने पर भगवान् को शुद्ध जल से स्नान कराया गया और उत्तम सफेढ बारीक दो वस्त्र और प्राभूपण पहिनाये गये । बादमें उनके लिये चन्द्रप्रभा नामक बडी सुशोभित पालकी लाई गई, उसमें भगवान् निर्मल शुभ मनोभाव से विराजे। उस समय उन्होंने एक ही वस्त्र धारण किया था। फिर उनको धूमधाम से गाते बजाते गांव के बाहर ज्ञातृवंशी क्षत्रियो के उद्यान में ले गये। उद्यान में श्राकर, भगवान् ने पूर्वाभिमुख बैठ कर सब अाभूपण उतार डाले और पांच मुटियो में, दाहिने हाथ से दाहिने ओर के और बांये हाथ से बायीं ओर के सब बाल उखाड डाले। फिर सिद्ध को नमस्कार करके, ‘ागे से मैं कोई पाप नहीं करूंगा,' यह नियम लेकर सामायिक चारित्र का स्वीकार किया। यह सब देव और मनुष्य चित्रवत् स्तब्ध होकर टेसते रहे। __ भगवान् को ज्ञायोपशमिक सामायिक चारित्र लेने के बाद मन.पर्यवज्ञान प्राप्त हुआ । इससे वे मनुष्यलोक के पंचेन्द्रिय और संजी जीवो के मनोगत भावो को नानने लगे । प्रव्रज्या लेने के बाद, भगवान् महावीर ने मित्र, ज्ञाति, स्वजन और सम्बन्धियो को विदा किया और खुद ने यह नियम लिया कि अब से बारह वर्ष तक मैं शरीर की रक्षा या ममता रखे बिना, जो कुछ परिपह और उपसर्ग पावेंगे, उन सबको

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