Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 137
________________ भावनाएँ है ~~~^^^^^^ wanna Wwwwwwww.. www www - १३१ नीमरी भावना - निर्ग्रन्थ अपनी भाषा की जांच करे; उसको ( मन के समान ही ) पापयुक्त, सदोष और कलह, द्वेप और परिताप युक्त न होने दे । चौथी भावना - निर्ग्रन्थ वस्तुमात्र को बराबर देखभाल कर, साफ करके ले या रखे क्योंकि असावधानी से लेने रखने में जीवो की हिंसा होना संभव है । पांचवीं भावना - निर्ग्रन्थ अपने श्राहार- पानी को भी देखभाल कर काम में ले क्योकि सावधानी से लेने में जीवजन्तु की हिंसा होना संभव है । निर्ग्रन्थ के इतना करने पर ही, यह कह सकते है कि उसने महामत को बराबर स्वीकार किया, पालन किया, कार्यान्वित किया या जिनों की आज्ञा के अनुसार किया । दूसरा महाव्रत- भै मव प्रकार के श्रसत्यरूप वाणी के दोप का यावज्जीवन त्याग करता हूँ । क्रोध से, लोभ से, भय से या हंसी से, मैं मन, वचन और काया से सत्य नहीं बोलूं, दूसरो से न बुलाऊं और बोलते हुए को अनुमति न दू । ( मैं इस पाप से...... यादि पहिले व्रत के अनुसार 1 ) इस महाव्रत की पाच भावनाएँ ये हैं पहिली भावना-निर्ग्रन्थ विचार कर बोले क्योकि विना विचारे योजने से श्रसत्य बोलना सम्भव है । दूसरी भावना - निर्ग्रन्थ क्रोध का त्याग करे क्योकि क्रोध में श्रमत्य बोलना सम्भव है ।

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