Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 136
________________ १३०] श्राचागंग सूत्र - - सम्पूर्म (सब वस्तुत्रो का) प्रनिपूर्ण (मत्र वस्नुयो के सम्पूर्ण भावों का), अव्याहत (कहीं न रुकनेवाला), निराबरण, अनन्त और सर्वोत्तम ऐसा केवल ज्ञानदर्शन उत्पन्न हुया ! अब भगवान् श्रहंत (विभुवन की पूजा के योग्य) जिन (गगटेपादिको जीतने वाले), केवली, सर्वज्ञ और समभावदर्शी हुए। भगवान् को केवल ज्ञान हुग्रा, उस समय देव-देवियों के आने जाने से अतरिक्ष में धूम मची थी। भगवान् ने पहिले अपने को और फिर लोक को देखभाल कर पहिले देवलोगोने धर्म कह सुनाया और फिर मनुष्यो को। ममुप्यो मे भगवान् ने गौतम आदि श्रमण निर्ग्रन्यो को भावना यो के साथ पांच महाव्रत इस प्रकार कह सुनाये: पहिला महाबत-मैं समस्त जीवों की हिसा का यावजीवन त्याग करता हूँ। स्थूल, सूक्ष्म, स्थावर या बस क्सिी भी जीवकी मन, वचन और काया से मैं हिसा न क्रूँ, न दूसरो से कराऊँ, और करते हुए को अनुमति न दूं। मैं इस पाप से निवृत्त होता है. इसकी निंदा करता हूँ, गहीं करता हूँ, और अपने को उससे मुक्त करता है। इस महावत की पांच भावनाएं ये हैं पहिली भावना-निर्धन्य किसी जीव को श्राघात न पहुंचे, इस प्रकार सावधानीस (चार हाथ धागे दृष्टि रख कर) चले क्योकि असावधानी से चलनेसे जीवो की हिंसा होना संभव है। दूसरी भावना-निर्ग्रन्थ अपने मन की जांच करे, उसको पापयुक्त, सदोप, मक्रिय, कर्मवन्धन करनेवाला और जीवो के वध, छेदन भेदन और कलह, द्वेप या परिताप युक्त न होने दे ।

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