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शय्या
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डास मच्छर की; कभी कचरेवाली तो कभी साफ; कभी पड़ी-सडी तो कभी अच्छी, कभी भयावह तो कभी निर्भय जगह मिले तो भिक्षु समता से उसे स्वीकार करे पर खिन्न या प्रसन्न न हो। मुनि के श्राचार की यही सम्पूर्णता है कि सब विषयो मे रागद्वेष से रहित और अपने क्ल्याण में वह तत्पर रहकर सावधानी से प्रवृत्ति करे। [११]