Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gopaldas Jivabhai Patel

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Page 110
________________ १०४] याचाराग सूत्र - - - ___ इसी प्रकार वृक्षो मे फल लगे देखकर ऐसा न कहे कि ये फल पके हैं, या पका कर खाने योग्य हैं या अभी खाने योग्य हैं, नरम हैं या टुकड़े करने योग्य है । परन्तु उन वृक्षो को देखकर ऐसा कहे कि, फल के भार से यह बहुत झुक गये है, उनमें बहुत से फल लगे हैं या फला का रंग अच्छा है। भिनु खेतो में धान्य खड़ा देखकर ऐसा न कहे कि वह पक गया है, या हरा है या सेफने योग्य है या धानी फोड़ने के योग्य है । पर ऐसा कहे कि, वह ऊगा हुआ है, बढा हुआ है, सरत हो गया है, रस भरा है, उसमें दाने लग गये है या लग रहे हैं । [१३८] भिनु अनेक प्रकार के शब्द सुन कर ऐसा न कहे कि, यह अच्छा या बुरा है परन्तु उसका स्वरूप बताने के लिये सुशब्द को सुशब्द और दुःशब्द को दु शब्द कहे । ऐसा ही रूप, गन्ध और रस के सम्बन्ध मे भी करे। [१३६ ] भिक्षु क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करके विचारपूर्वक विश्वास करके ही वोले, जैसा सुने, वैसा ही कहे; तथा घबराये विना, विवेक से, समभाव पूर्वक, सावधानी से बोले । [१४० ] मिनु या मिषुणी के प्राचार की यही सम्पूर्णता है कि वह सब विपयो मे सदा रागद्वेपरहित और अपने कल्याण में तत्पर रह कर सावधानी से प्रवृत्ति करे।

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