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१०८]
याचागंग सूत्र
Ramanuman
भिक्षु, ऐसा समझकर कि वस्न नया नहीं है, दुर्गन्ध से भरा हुआ है; उनको सुगन्धी पहार्य उकाले या टडे या गरम पानी मे धोवे या साफ न करे। [१४७]
भिक्षु को दस को धूप में सुखाने की जरूरत पडे नो वह उनको गीली या जीवजन्तु बाली जमीन पर न डाले। इसी प्रकार उनकी जमीन से ऊपर की वस्तु यो पर जो इधर-उधर हिलनी हो, पर भी न डाले और कोट, भीत, शिला, ठेले, खम्भे, खाट, मंजिस्न या छत' अादि जमीन से ऊपर भी या हिलने वाली जगह पर भी न डाले। परन्तु वस्त्र को एकान्त में ले जाकर वहाँ जली हुई जमीन यादि चिना जीवजन्तु के स्थान पर देख भालकर माफ करके डाले। [१४८]
भित्तु, ऐसे ही वस्त्र मांगे जिनको वह स्वीकार कर सकता हो और जैसे मिले वैसे ही पहिने। उनको धोवे या गे नहीं, गौर धोये हुये या रंगे हुए वस्त्र न पहिने, दूसरे गांव जाते हुए उनको कोई छीन लेगा, इस डर से न छिपावे, यौर ऐसे ही वस्त्र धारण करे जिनको छीनने का मन किसीका न हो। यह वस्त्र धारी भिक्षु का सम्पूर्ण श्राचार है।
गृहस्थ के घर जाते समय अपने वसा साथ में लेकर ही जाचेआवे । ऐमा ही शौच या स्वाध्याय करने जाते समय करे । परन्तु वर्षा ग्रादि के समय बस्स साथ में लेकर न जावे-यावे । [ १४६]
कोई भिक्षु दूसरे गांव जाते समय, कुछ समय के लिये किसी भिक्षु से मांग कर वस्त्र ले ग्रावे और फिर वापिस पाने पर उस वस्त्र को उसके मालिक को देने लगे तो वह उसको वापिस न ले या लेकर दूसरे को न दे दे, या किमी का मांग कर न दे